विलेन डैनी डेन्जोंगपा ने बनाया भारत का तीसरा सबसे बड़ा बीयर ब्रांड

मुंबई

बॉलीवुड इंडस्ट्री के पॉप्युलर विलेन डैनी डेन्जोंगपा ने फिल्मी करियर में तो खूब नाम कमाया ही है। वह पर्सनल लाइफ में भी गर्दा उड़ा रहे हैं। एक्टर अपना एक बिजनेस कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने उत्तर-पूर्वी भारत में विजय माल्या में फटकने तक नहीं दिया। और वहां की अर्थव्यवस्था में वह 100 करोड़ रुपये का योगदान भी दे रहे हैं। साथ ही एक और रिकॉर्ड बनाया है, जिसके बारे में आगे बताने जा रहे हैं।

डैनी डेन्जोंगपा का असली नाम शेरिंग फिंटसो डेन्जोंगपा है। वह 1948 में सिक्किम में पैदा हुए थे। 1971 में उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा था। उन्होंने 'लव स्टोरी', 'घातक', 'अग्निपथ', 'खुदा गवाह', 'क्रांतिवीर' और 'चाइना गेट' जैसी सुपरहिट फिल्मों में काम भी किया और अपनी पहचान बनाई। हालांकि साथ ही उन्होंन 1987 में सिक्किम में 'युकसोम ब्रुअरीज' नाम से बीयर बिजनेस की शुरुआत की। कंपना का नाम एक्टर ने अपने होमटाउन पर रखा।

डैनी डेन्जोंगपा की कंपनी की प्रोडक्शन कैपेसिटी
उन्होंने 2005 में ओडिशा में डेन्जोंग ब्रुअरीज की स्थापना कर अपना बिजनेस बढ़ाया। फिर चार साल बाद उन्होंने असम की राइनो एजेंसीज पर कब्जा कर लिया। डैनी की कंपनी 'युकसोम ब्रुअरीज' की वेबसाइट के मुताबिक, ब्रांड की प्रोडक्शन कैपेसिटी 6.8 लाख HL प्रति वर्ष है। इससे एक्टर की बीयर कंपनी तीसरी सबसे बड़ी भारतीय बीयर कंपनी बन गई। इससे आगे किंगफिशर और किमाया हैं।

विजय माल्या की कंपनी को नॉर्थ-ईस्ट में घुसने नहीं दिया
भारत में 2009 में बीयर का बाजार तेजी से फैल रहा था। विजय माल्या की यूनाइटेड ब्रुअरीज ने लगभग पूरे देश पर कब्जा कर लिया था, लेकिन पूर्वोत्तर के सात राज्यों में एंट्री नहीं कर पाई थी। शराब के इस दिग्गज व्यापारी की नजर असम की राइनो एजेंसीज पर थी, जो एक नई शराब बनाने वाली कंपनी है। हालांकि, डैनी चाहते थे कि उनकी युकसोम पूर्वोत्तर के बाजार पर हावी हो। MSN ने बताया कि माल्या की के इरादों को भांपते हुए डैनी ने खुद राइनो एजेंसीज को खरीद लिया और बाजार में अपनी स्थिति मजबूत कर ली।

डैनी डेन्जोंगपा की बीयर कंपनी का अर्थव्यवस्था में योगदान
डैनी डेन्जोंगापा के होमटाउन को प्रमोट करने के लिए वहां के लोकल लोगों को युकसोम में बड़े पैमाने पर रोजगार दिया जाता है। 'सिक्किम एक्सप्रेस' ने 2022 में बताया कि पूर्वोत्तर में स्थित शराब बनाने वाली फैक्ट्रियां 250 लोगों को रोजगार देती हैं और हर साल स्थानीय अर्थव्यवस्था में 100 करोड़ रुपये का योगदान देती हैं।

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