प्रकृति के नियमों से खोजें सिंचाई के नए तरीके : मुख्य सचिव जैन

भोपाल
लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा राज्यमंत्री श्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने कहा है कि प्राचीन काल से हमें जल संरक्षण का कार्य सिखाया गया है। ऋषि-मुनियों ने शोध कर हमें बताया कि जल शरीर के लिए कितना आवश्यक है। हमारा शरीर पंचतत्व से बना है, इन पांच तत्वों में जल भी शामिल हैं, ऐसे में जल संरक्षण करना हमारा दायित्व है। राज्यमंत्री श्री पटेल ने कहा कि पूरी दुनिया हमारा परिवार है और हम जल को लेकर वैज्ञानिक तरीके से रिसर्च कर उसके संरक्षण का काम कर रहे हैं। श्री पटेल ने कहा कि मैं भी सिविल इंजीनियर हूँ, मैंने जल संरचना के निर्माण को लेकर ग्राउंड जीरो पर काम किया है। जहां भी काम किया, वहां लोगों ने पानी का मूल्य समझा और पूरा समर्थन दिया। हमारे देश में नदियों को माँ का दर्जा दिया गया है और माँ को हम दूषित और मैला नहीं कर सकते, इसलिए हम इनके संरक्षण के लिए काम करें और बेहतर तरीके से जल का सदुपयोग करें। प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है ऐसे में हमारा दायित्व है कि प्रकृति को भी हम जल संरक्षण कर प्राणी मात्र के जीवन में योगदान दें।

राज्य मंत्री श्री पटेल कुशाभाऊ ठाकरे कन्वेंशन सेंटर, भोपाल में आयोजित जल और पर्यावरण पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे। सम्मेलन का आयोजन अमेरिकन सोसाइटी ऑफ सिविल इंजीनियर्स के पर्यावरण एवं जल संसाधन संस्थान और मध्यप्रदेश जल संसाधन विभाग एवं अंत्योदय प्रबोधन संस्थान के सहयोग से किया गया। सम्मेलन का मुख्य विषय "जलवायु परिवर्तन के अनुकूल सतत और मजबूत जल बुनियादी ढांचे का निर्माण" था।

सम्मेलन में विश्व संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, भारत सहित विश्व के अन्य देशों के विशेषज्ञ शामिल हुए। जल संबंधी समस्याओं के समाधान पर महत्वपूर्ण विचार-विमर्श में 30 से अधिक देशों के प्रतिभागियों ने 125 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए, जो आम लोगों के लिए भी उपलब्ध कराए गये।

समापन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य सचिव श्री अनुराग जैन ने कहा कि प्रकृति का नियम है कि पानी ऊपर से नीचे आता है, इस नियम को ध्यान में रखते हुए इंजीनियर सिंचाई के तरीके खोजें। उन्होंने कहा कि कम्युनिटी की सहभागिता के बिना किसी प्रोजेक्ट को पूरा नहीं किया जा सकता, ऐसे में जो प्रोजेक्ट आप तैयार कर रहे हैं, उसमें लोगों की सहभागिता जरूर शामिल करेंगे, इससे दूरगामी परिणाम सामने आएंगे। श्री जैन ने अपने मंदसौर कलेक्टर के कार्यकाल का उदाहरण देते हुए बताया कि साल 1999 में एक स्टॉप डेम हमें बनाना था, जिसकी लागत 15 लाख रुपए थी, लेकिन पंचायत के पास महज ढाई लाख रुपए थे। ऐसे में जनसहयोग से हमने 6 महीने में पूरा होने वाला काम केवल 30 दिन में पूरा कर दिया।

सचिवजल संसाधन श्री जॉन किंग्सली ए.आर. ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार जल संरक्षण और जल संवर्धन के साथ ही जल के आदर्श उपयोग में दक्षता के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। प्रदेश में दाबयुक्त सिंचाई प्रणाली के जरिए जल के अधिकतम उपयोग से जल के अपव्यय को कम किया गया है। इससे बचाए गये शेष जल का उपयोग सैंच्य क्षेत्र विस्तार, ग्रामीण एवं शहरी पेयजल आपूर्ति तथा अन्य क्षेत्रों में किया जाना संभव हो सकेगा।

मोहनपुरा कुंडलियां की प्रेशराइज्ड पाइप प्रणाली की सफलता के बाद पार्वती-कालीसिंध-चंबल नदी जोड़ो परियोजना और केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के माध्यम से जल की अधिकता वाले क्षेत्रों से अतिरिक्त जल को सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भेजने तथा भण्डारण करने से कृषि और घरेलू उपयोग के लिए जल की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकेगी।

सम्मेलन में जल और पर्यावरण से जुड़े प्रमुख मुद्दों और जल प्रबंधन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण समस्याओं, विशेष रूप से स्थायी और मजबूत जल अवसंरचना का निर्माण एवं जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए मंथन किया गया। सम्मेलन में स्वच्छ जल आपूर्ति, जल संरक्षण, अपशिष्ट जल का उपचार, नदियों, बांधों और सिंचाई, जल उपयोग दक्षता, प्रणालियों का स्मार्ट प्रबंधन जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित किया गया। सम्मेलन में मोहनपुरा कुंडलियां परियोजना, केन बेतवा लिंक परियोजना, साईं संकेत, जैन इरिगेशन और करण डेवलपर्स सर्विस सहित 30 से अधिक के स्टाल लगाए गए।

सम्मेलन में अमेरिकन सोसायटी ऑफ सिविल इंजीनियर्स के अध्यक्ष फिनियोस्की पेना मोरा, अध्यक्ष पर्यावरण एवं जल संसाधन संस्थान शर्लि क्लार्क, सम्मेलन अध्यक्ष श्रीधर कमोज्जला, स्थानीय सम्मेलन अध्यक्ष व अधीक्षण यंत्री विकास राजोरिया, कैरोल ई हेडॉक, ब्रायन पारसंस, मेनिट डायरेक्टर करुणेश कुमार शुक्ला आदि उपस्थित थे।

सम्मेलन स्वच्छ जल आपूर्ति, जल संरक्षण, अपशिष्ट जल का उपचार और नदियों, बांधों एवं सिंचाई, जल उपयोग दक्षता, प्रणालियों का स्मार्ट प्रबंधन जैसे विषयों पर केंद्रित रहा।

 

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