कोलकाता
पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी टीएमसी में ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक के बीच मतभेदों की खबरें अकसर आती हैं। चर्चाएं यह भी रही हैं कि अभिषेक बनर्जी पार्टी में अहम ओहदा चाहते हैं, लेकिन ममता बनर्जी ने फिलहाल भतीजे के लिए इंतजार का ही विकल्प रखा है। उन्होंने अपने बर्थडे सेलिब्रेशन को लेकर कहा कि पार्टी के कार्यकर्ता मेरा जन्मदिन मनाते हैं, लेकिन मेरी जन्मतिथि ही तय नहीं है। यहां तक कि मेरी उम्र तो सर्टिफिकेट पर 5 साल अधिक लिखी है। ममता बनर्जी ने एक मीटिंग में यह भी कहा कि अभी मैं 10 सालों तक सक्रिय हूं और पार्टी की कमान मेरे पास ही रहेगी। उनकी इस टिप्पणी के बाद से ही चर्चाएं तेज हैं कि क्या दीदी ने भतीजे की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं पर लगाम कसने के लिए यह फैसला लिया है।
ममता बनर्जी ने कहा, 'हर कोई मेरा जन्मदिन मनाता है। लेकिन जबकि मेरी जन्मतिथि बताई जाती है, तब मैं पैदा ही नहीं हुई थी। उस दौर में घरों में ही बच्चे पैदा होते थे। मैंने नाम तो अपना नाम तय किया, ना ही आयु तय की और ना ही अपना सरनेम तय किया था। मुझे बहुत से लोग जन्मदिन की बधाई देते हैं, लेकिन यह मेरे जन्म की तारीख नहीं है। मेरे पैरेंट्स ने बस सर्टिफिकेट में एक तारीख लिखवा दी थी। उसे आज मेरे जन्म की तिथि माना जाता है।' ममता बनर्जी ने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। पुराने टाइम में ऐसा होता था कि लोग टाइम आदि का ज्यादा ध्यान नहीं रखते। अस्पतालों में बच्चों का जन्म नहीं होता था बल्कि घरों में ही बच्चे पैदा होते थे। उन्होंने कहा कि मैंने एक किताब में अपने जन्म के बारे में लिखा है कि कैसे मेरा दाखिल हुआ और जन्मतिथि लिखी गई।
दरअसल दस्तावेजों में ममता बनर्जी की जन्मतिथि 5 जनवरी, 1955 लिखी गई है। इसके अनुसार वह 70 साल की हो गई हैं, लेकिन ममता बनर्जी का दावा है कि उनकी आयु 65 साल ही है। ममता बनर्जी के इन दावों से साफ हो गया है कि वह टीएमसी की कमान फिलहाल बनाए रखना चाहती हैं। उनकी इस मंशा को भतीजे अभिषेक बनर्जी के लिए झटके के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। बता दें कि अभिषेक बनर्जी और ममता बनर्जी के समर्थकों के बीच अकसर ही मतभेद देखने को मिलते हैं। खासतौर पर डायमंड हार्बर लोकसभा क्षेत्र में अभिषेक बनर्जी की ओर से राज्य सरकार से अलग समानांतर योजनाएं चलाने की भी चर्चाएं होती रही हैं। अभिषेक बनर्जी की ओर से इन प्रयासों को ममता दीदी से अलग एक मॉडल पेश करने की कोशिश के तौर पर देखा जाता है।
दिलचस्प बात यह है कि ममता बनर्जी ने 10 साल ऐक्टिव रहने की बात कही तो अभिषेक बनर्जी ने मतभेदों से इनकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि परिवार में ऐसा होता रहता है। उन्होंने कहा, 'जब कोई राजनीतिक दल बढ़ता है और बड़ा होता है तो ऐसे वाकये भी होते हैं। क्या भाजपा और सीपीएम के बीच कोई मतभेद नहीं है? परिवारों में भी आंतरिक मतभेद होते हैं। हजारों पार्टी कार्यकर्ता हैं। इसलिए आपस में थोड़े बहुत मतभेद होना लाजिमी है। क्या वर्कप्लेस पर कर्मचारियों में मतभेद नहीं होते? लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं है कि जिसके मन में जो आए, वह करने लगे।'