छत्तीसगढ़-बस्तर में ग्रामीणों ने पिता के शव को दफनाने से रोका

बिलासपुर।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस बात पर दुख जताया कि छत्तीसगढ़ के एक गांव में एक व्यक्ति को अपने पिता को ईसाई रीति-रिवाजों से दफनाने के लिए शीर्ष अदालत आना पड़ा, क्योंकि अधिकारी इस मुद्दे को सुलझाने में विफल रहे. कोर्ट ने कहा कि बीते वर्षों और दशकों में क्या हुआ और क्या स्थिति थी, आपत्ति अब ही क्यों उठाई जा रही है?

मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सवाल किया- किसी व्यक्ति को किसी खास गांव में क्यों नहीं दफनाया जाना चाहिए? शव 7 जनवरी से मुर्दाघर में पड़ा हुआ है. यह कहते हुए दुख हो रहा है कि एक व्यक्ति को अपने पिता को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ रहा है. पीठ ने कहा, “हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि न तो पंचायत, न ही राज्य सरकार या हाईकोर्ट इस समस्या का समाधान कर पाए. हम हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से हैरान हैं कि इससे कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा होगी. छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि गांव में ईसाइयों के लिए कोई कब्रिस्तान नहीं है और मृत व्यक्ति को गांव से 20 किलोमीटर दूर किसी स्थान पर दफनाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट बस्तर के ग्राम छिंदवाड़ा निवासी रमेश बघेल की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है. हाईकोर्ट ने उसके पिता जो पादरी थे, को गांव के कब्रिस्तान में ईसाइयों के लिए निर्धारित क्षेत्र में दफनाने की मांग वाली याचिका को शांति भंग की आशंका पर खारिज कर दिया था. बघेल ने अपनी याचिका में कहा कि ग्रामीणों ने उनके पादरी पिता को कब्रिस्तान में दफनाने पर उग्र विरोध किया था. साथ ही पुलिस ने उन्हें कानूनी कार्रवाई की धमकी दी थी. सोमवार को सुनवाई के दौरान बघेल की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत शपथपत्र से पता चलता है कि उनके परिवार के सदस्यों को भी गांव में दफनाया गया था और मृतक को दफनाने की अनुमति नहीं दी जा रही थी, क्योंकि वह ईसाई थे. गोंजाल्विस ने स्पष्ट किया कि उनके मुवक्किल अपने पिता को गांव के बाहर दफनाना नहीं चाहते. राज्य सरकार के वकील तुषार मेहता ने कहा कि पादरी का बेटा आदिवासी हिंदुओं और आदिवासी ईसाइयों के बीच अशांति पैदा करने के लिए अपने पिता को अपने परिवार के पैतृक गांव के कब्रिस्तान में दफनाने पर अड़ा हुआ है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शव 7 जनवरी से मुर्दाघर में है, समाधान क्या है? मेहता ने कहा कि उनकी याचिका में कहा गया है कि गांव वालों की तरफ से आपत्ति है. मेहता ने कोर्ट से अनुरोध किया कि मामले की सुनवाई मंगलवार या बुधवार को की जाए, वे बेहतर हलफनामा देंगे. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अदालत याचिकाकर्ता को जाने और दफनाने की अनुमति दे सकता है, और मामला समाप्त हो जाएगा. हालांकि, मेहता ने मामले में जल्दबाजी में फैसला न सुनाने का आग्रह किया और अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा कि इसका उद्देश्य अराजकता पैदा करना नहीं है. मेहता ने कहा कि समाधान यह है कि गांव में ईसाई जो कुछ भी कर रहे हैं, याचिकाकर्ता को भी वही करना चाहिए. सुनवाई के बाद पीठ ने मामले की अगली सुनवाई बुधवार को रखी है.

More From Author

राजस्थान-बीकानेर हाउस में महिलाओं के उत्पादों को प्रोत्साहित करने हुई राजसखी बायर-सेलर मीट

ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर अनुसार की जाए व्यवस्था: अनुराग जैन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

city24x7.news founded in 2021 is India’s leading Hindi News Portal with the aim of reaching millions of Indians in India and significantly worldwide Indian Diaspora who are eager to stay in touch with India based news and stories in Hindi because of the varied contents presented in an eye pleasing design format.