पाकिस्तानी विचारक ने भारत की शिक्षा व्यवस्था की तारीफ की, कहा- हम मुल्लाइयत छोड़ें तो कुछ सीख पाएंगे

इस्लामाबाद
पाकिस्तानी विचारक और फिजिक्स के नामी प्रोफेसर परवेज हुदभाय ने भारत की शिक्षा व्यवस्था की तारीफ की है। यही नहीं उन्होंने खासतौर पर साइंस को लेकर कहा कि भारत के प्राचीन इतिहास से पता चलता है कि वे गणित और विज्ञान में अच्छी स्थिति में थे। इफत उमर के साथ एक पॉडकास्ट में परवेज हुभाय ने कहा कि यह पता चलता है कि जीरो की खोज भारत में हुई थी। इफत उमर ने कहा कि जीरो की खोज तो भारत में ही हुई है। इस पर परवेज हुदभाय ने कहा कि हिन्दुस्तान के प्राचीन इतिहास में ब्राह्मणों का खास फोकस गणित पर रहा है। उन्होंने आर्यभट्ट का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने बड़ा योगदान दिया। इस पर इफत उमर ने कहा कि जिस तरह के प्राचीन मंदिर भारत में देखे जाते हैं, उससे पता चलता है कि वे गणित और विज्ञान में बहुत अच्छी स्थिति में थे। मंदिरों का डिजाइन उसके बारे में बताता है।

परवेज हुदभाय ने कहा कि भारत की यह संस्कृति इस्लाम के पहले की थी। तब उनका गणित बहुत अच्छा था और उनके द्वारा दी गई यह जानकारी अरबों के माध्यम से यूरोप तक पहुंची। उन्होंने कहा कि साइंस के मामले में तो भारत, चीन, मिस्र और यूनान ही आगे थे। 6000 साल पहले भी भारत में विज्ञान और गणित पर काम हो रहा था। उस दौर में यूरोप तो अंधकार में था। आखिर पाकिस्तान में कैसे साइंस को बढ़ावा मिल सकता है? इस पर परवेज हुदभाय ने कहा कि इसके लिए हमें मुल्लाइयत को छोड़ना होगा। हर चीज में हमें मजहब नहीं देखना होगा। उन्होंने कहा कि हमारे यहां एक बड़ा वर्ग यही कहता है कि हमारे पास एक कुरान है और हर बात उसी में लिखी है। उसके अलावा हमें किसी अन्य चीज की जरूरत नहीं है। परवेज हुदभाय एक तार्किक अकादमिशियन माने जाते हैं। उन्होंने कई चर्चित पुस्तकें भी लिखी हैं और इतिहास पर भी उनका गहरा अध्ययन रहा है।

फिजिक्स के प्रोफेसर ने कहा कि भारत में भी कट्टरपंथी तत्व हैं, लेकिन शिक्षा पर उनकी कोई छाप नहीं दिखती। उन्होंने कहा कि भारत में जैसी शिक्षा है, वह ग्लोबल स्टैंडर्ड की है। यदि पाकिस्तान को कुछ अच्छा करना है तो उसे भी शिक्षा बेहतर करनी होगी। साइंस पर फोकस करना होगा। उन्होंने इस दौरान मुगलों के दौर का भी जिक्र किया और कहा कि इस दौरान किसी तरह का कोई आविष्कार नहीं हुआ। उन्होंने एक वाकया सुनाते हुए कहा कि शाहजहां के दरबार में एक अंग्रेज अधिकारी टॉमस रो आया तो उसने चश्मे, दूरबीन समेत कई चीजें दिखाईं और कहा कि हमने इनका आविष्कार किया है। तब बादशाह ने कहा कि यह बहुत अच्छी चीज है और इनकी कीमत क्या है। उन्हें कीमत देकर खरीद लिया गया। इस तरह का रवैया खतरनाक है।
मुगलों ने एक यूनिवर्सिटी तक नहीं बनवाई, इल्म के लिए कुछ नहीं किया

यह नहीं पूछा गया कि इन्हें बनाने का तरीका क्या है। यदि उनका आविष्कार कैसे हुआ, यह जान लिया जाता तो साइंस समझ आता। लेकिन सिर्फ पैसे देकर चीजों को खरीद लिया गया। उन्होंने कहा कि मुगलों की रुचि इमारतें बनाने, शायरी और जंगों में तो थी, लेकिन वे साइंस में जीरो थे। हम आज उसी का खामियाजा भुगत रहे हैं। वहीं हिन्दुस्तान तेजी से आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि 13वीं सदी तक इस्लाम में भी साइंस था। लेकिन फिर मुल्लाइयत छा गई और दिमाग बंद हो गया। मुल्लाइयत की यह विचारधारा कहती है कि हमें तो अल्लाह ने एक किताब दी है और उसने सब कुछ दिया है। जब आप ऐसा सोचेंगे तो फिर साइंस क्या ही आएगा। उन्होंने मुगल शासन की भी आलोचना की और कहा कि तब ताजमहल बना और लाल किला बना। उस दौर में तमाम इमारतें मुगलों ने बनवाईं, लेकिन एक यूनिवर्सिटी तक नहीं बनी।

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