भोपाल
सनातन संस्कृति की दिव्य अनुभूति के महापर्व "प्रयागराज महाकुम्भ " में आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा अद्वैत वेदान्त दर्शन के लोकव्यापीकरण एवं सार्वभौमिक एकात्मता की संकल्पना के उद्देश्य से "एकात्म धाम शिविर" सेक्टर-18, हरिश्चन्द्र मार्ग, महाकुम्भ क्षेत्र, झूंसी, प्रयागराज में गुरुवार को हजारों दर्शकों की उपस्थिति में आदि शंकराचार्य के जीवन पर केंद्रित दो दिवसीय नृत्य नाटिका के प्रथम दिन ‘शंकर गाथा‘ की प्रस्तुति हुई तो पूरा सभागार मंत्रमुग्ध हो उठा, गाथा के सूत्रधार की भूमिका महाभारत के श्रीकृष्ण के रूप में लोकप्रिय अभिनेता नितेश भारद्वाज ने निभाई। वहीं इसका निर्देशन विश्व प्रसिद्ध कोरियोग्राफर मैत्रेयी पहाड़ी ने किया।
दैनिक दिनचर्या में साधना से ‘दिव्य रूपांतरण‘ विषय पर जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि महाराज की गरिमामय उपस्थिति में आयोजित सत्र में चिन्मय मिशन चेन्नई के स्वामी मित्रानन्द सरस्वती, नेशनल कैपिसिटी बिल्डिंग कमीशन (NPCSCB) से आर.बाला सुब्रमण्यम ,03 बार के ग्रेमी अवार्ड विजेता पद्मरिकी केज (Ricky Kej, UNHCR Goodwill Ambassador), ऐश्वर्या हेगड़े (नेशनल एजुकेशन फाउंडेशन की न्यासी सचिव) एवं प्राच्यम के सह-संस्थापक प्रवीण चतुर्वेदी ने अपने विचार व्यक्त किये। स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा, “शंकर भगवत्पाद का अद्वैत सिद्धांत समाधान मूलक है। विश्व में जो अशांति व्याप्त है, उसका समाधान यदि कहीं से निकलेगा तो वह अद्वैत वेदांत से होगा। आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास के प्रयास प्रशंसनीय हैं। आने वाला युग और शताब्दियाँ आदि शंकराचार्य के विचारों का अनुसरण करेंगी।”
स्वामी मित्रानंद सरस्वती ने कहा, “हमारे हर छोटे से छोटे कार्य को प्रार्थना में बदला जा सकता है। जब हम अपने कार्यों को भगवान को समर्पित करके करते हैं, तो वह कर्म योग बन जाता है। ऐसा कार्य कर्मों से प्रभावित नहीं होता।”
अपने कार्य के प्रति अद्वितीय जुनून होना चाहिए : ग्रेमी अवार्ड विजेता पद्मरिकी केज
संगीतकार पद्मरिकी केज ने कहा, “संगीत और प्रकृति एक ही हैं। अपने कार्य के प्रति अद्वितीय जुनून होना चाहिए। सभी पर्यावरणीय और सामाजिक समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या यह सोच है कि कोई और दुनिया को बदलेगा। हम खुद को बदलने के लिए तैयार नहीं होते।”
प्रवीण चतुर्वेदी ने कहा, “जीवन में दो साधनाएँ आवश्यक हैं—आंतरिक साधना, जो आत्म साक्षात्कार की ओर ले जाती है, और बाहरी साधना, जो संसार में रहकर कर्मों को कुशल बनाती है। ज्ञान और परंपरा की अविरल धारा को आगे बढ़ाना हमारा कर्तव्य है। तभी जीवन में पवित्र परिवर्तन आएगा।”*महाभारत के कृष्ण जब ‘शंकरगाथा‘ को लेकर मंच पर उतरे तो तालियों से गूंज उठा सभागार
सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘शंकर गाथा’ में आदि शंकराचार्य विरचित निर्वाण षट्कम – मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहम्, नर्मदाष्टकम् – त्वदीय पाद पंकजम् नमामि देवी नर्मदे, कृष्णाष्टकम् – भजे व्रजैक मंडनम् सहित भज गोविन्दम् आदि पर आधारित विभिन्न नृत्य विधाओं की प्रस्तुतियाँ देशभर से आए कलाकारों द्वारा दी गईं। प्रस्तुति में मणिपुरी, ओडिशी, भरतनाट्यम् के समवेत कलाकारों ने सांस्कृतिक एकता का अद्भुत चित्र प्रस्तुत किया।