वायनाड आपदा पर प्रियंका गांधी ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर राहत पैकेज बढ़ाने की मांग की

नई दिल्ली
केरल के वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर वायनाड में पिछले वर्ष आई विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन के पीड़ितों के लिए पर्याप्त राहत और पुनर्वास की मांग की है। उन्होंने लिखा कि त्रासदी के छह महीने बाद भी प्रभावित लोग कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं और अपने जीवन को फिर से बसाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने पत्र में उल्लेख किया कि 30 जुलाई 2024 को वायनाड जिले के चूरलमाला और मुंडक्कई में भूस्खलन की विनाशकारी घटना हुई थी, जिसमें 298 लोगों की जान चली गई। 231 शवों के साथ-साथ 223 शरीर के अंग बरामद किए गए थे। 32 लोग लापता थे, जिन्हें बाद में मृत घोषित कर दिया गया। इस त्रासदी में 17 परिवार पूरी तरह से समाप्त हो गए और 1,685 इमारतें क्षतिग्रस्त हुईं, जिनमें घर, स्कूल, सरकारी दफ्तर, अस्पताल, दुकानों समेत अन्य सार्वजनिक स्थल शामिल थे।

उन्होंने लिखा कि इस आपदा ने शिक्षा प्रणाली को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। सरकारी व्यावसायिक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय वेल्लारीमाला और सरकारी निम्न प्राथमिक विद्यालय मुंडक्कई पूरी तरह से नष्ट हो गए, जहां 658 छात्र पढ़ते थे। इन दोनों संस्थानों का स्थायी पुनर्वास अब तक नहीं हो सका है, जिससे बच्चों की शिक्षा बाधित हो रही है।

''भूस्खलन के कारण 110 एकड़ कृषि भूमि नष्ट हो गई, जिससे चाय, कॉफी और इलायची की खेती करने वाले किसानों की आजीविका खत्म हो गई। इसके अलावा, इस क्षेत्र में पर्यटन से जुड़े कई लोग बेरोजगार हो गए हैं। जीप और ऑटो रिक्शा चालक, दुकान मालिक, होम-स्टे संचालक और पर्यटक गाइडों को आय के नए स्रोत नहीं मिल पा रहे हैं। मेप्पाडी ग्राम पंचायतों के वार्ड नंबर 10, 11 और 12 में छोटे उद्योग चलाने वाले लोग भी कठिनाइयों से जूझ रहे हैं।''

प्रियंका गांधी ने पत्र में लिखा कि वायनाड जिले के लोगों को राज्य और केंद्र सरकार से निर्णायक वित्तीय और ढांचागत सहायता की जरूरत है, लेकिन पुनर्वास प्रक्रिया अत्यंत धीमी गति से चल रही है। इससे पीड़ितों की पीड़ा और बढ़ रही है, क्योंकि उनके भविष्य को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।

उन्होंने बताया कि केरल के सांसदों द्वारा लगातार आग्रह किए जाने के बाद केंद्र सरकार ने हाल ही में 529.50 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है। हालांकि, यह राहत पैकेज न केवल अपर्याप्त है, बल्कि दो शर्तों के साथ आया है। पहला, यह राशि अनुदान के बजाय ऋण के रूप में दी जाएगी और दूसरा, इसे 31 मार्च 2025 तक पूरी तरह खर्च करना होगा। यह शर्तें पीड़ितों की पीड़ा को और बढ़ाती हैं।

उन्होंने प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि उन्होंने स्वयं इस त्रासदी के बाद प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था, जिससे लोगों को केंद्र सरकार से बड़ी वित्तीय मदद की उम्मीद जगी थी। लेकिन, उन्हें यह देखकर निराशा हुई कि यह उम्मीदें पूरी नहीं हुईं। केंद्र सरकार द्वारा इस आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने से इनकार करना भी पीड़ितों के लिए बड़ा झटका था। हालांकि, बाद में इसे ''गंभीर प्रकृति की आपदा'' घोषित किया गया, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।

उन्होंने प्रधानमंत्री से राहत पैकेज को अनुदान में बदलने और इसकी समय सीमा बढ़ाने का अनुरोध किया है। उन्होंने लिखा कि इससे प्रभावित परिवारों को अपना जीवन दोबारा शुरू करने में मदद मिलेगी और उनके मन में यह विश्वास पैदा होगा कि भविष्य में वे सुरक्षित रह सकते हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की कि वह इस गंभीर मानवीय संकट के प्रति संवेदनशीलता दिखाए और वायनाड के लोगों को पुनर्वास में पूरी सहायता प्रदान करे।

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