भोपाल
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 1984 की भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े यूनियन कार्बाइड के खतरनाक कचरे के निपटारे को लेकर अधिकारियों से यह बताने को कहा है कि इस प्रक्रिया में कौन-कौन से एहतियाती कदम उठाए गए हैं। यह मामला मध्य प्रदेश के धार जिले के पीथमपुर क्षेत्र में कचरे के निपटारे से जुड़ा है, जहां 377 टन जहरीले कचरे को स्थानांतरित किया गया था। अगली सुनवाई 27 फरवरी को होगी।
सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों से सवाल
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह बेंच ने अधिकारियों से जवाब मांगा है कि क्या निपटारे से जुड़े सुरक्षा उपाय पर्याप्त हैं? अदालत ने कहा कि हम इस प्रक्रिया को तभी रोकेंगे, जब हमें इस पर गंभीर आपत्ति लगे। अदालत ने अधिकारियों को स्पष्ट करने को कहा कि क्या निवासियों की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को ध्यान में रखा गया है?
लगातार दो महीने सरकार को फटकार
दिसंबर 2023 और जनवरी 2024 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद यूनियन कार्बाइड का कचरा न हटाने पर फटकार लगाई थी। हाईकोर्ट ने चार सप्ताह की समय-सीमा देते हुए सरकार को कचरे को हटाने का आदेश दिया था, अन्यथा अवमानना कार्रवाई की चेतावनी दी थी। 1 जनवरी 2024 की रात, 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में यह कचरा पीथमपुर ले जाया गया।
याचिकाकर्ता ने जताई आपत्ति
याचिकाकर्ता की अर्जी में कहा गया है कि चार से पांच गांव पीथमपुर में कचरा निपटारे स्थल के 1 किलोमीटर के दायरे में आते हैं। गंभीर नदी इस निपटारे स्थल के पास से बहती है और यशवंत सागर बांध में मिलती है, जो इंदौर की 40% आबादी को पीने का पानी उपलब्ध कराता है। आरोप है कि अधिकारियों ने प्रभावित लोगों को खतरे से अवगत नहीं कराया और कोई स्वास्थ्य परामर्श जारी नहीं किया।
हाईकोर्ट के आदेशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के इन आदेशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने तर्क दिया कि पीथमपुर में कचरे का निपटान किए जाने से गंभीर स्वास्थ्य और पर्यावरणीय खतरे उत्पन्न होंगे। जनता को न तो कोई परामर्श दिया गया, न ही सुरक्षा उपायों पर चर्चा हुई।
क्या है चुनौतियां
पीथमपुर संयंत्र के पास आबादी बसी हुई है। तरापुरा गांव (105 मकान) सिर्फ 250 मीटर की दूरी पर है, लेकिन लोगों को विस्थापित करने की कोई योजना नहीं बनाई गई। भीर नदी के पास संयंत्र स्थित है, जिससे जल प्रदूषण होने का खतरा है। याचिका में मांग की गई है कि पीथमपुर में कचरे का निपटान न किया जाए। छोटे-छोटे हिस्सों में अलग-अलग जगहों पर सुरक्षित तरीके से कचरे को नष्ट किया जाए। प्रभावित नागरिकों को स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों के बारे में जानकारी दी जाए और उचित सुरक्षा उपाय किए जाएं। पीथमपुर में 1250 से अधिक उद्योग हैं और यह घनी आबादी वाला क्षेत्र है। यह इंदौर से सिर्फ 30 किमी दूर है, जिससे इंदौर के नागरिकों पर भी खतरा मंडरा रहा है।
तीन ट्रायल में होगा निपटारा
18 फरवरी के आदेश में हाईकोर्ट ने कहा था कि 30 मीट्रिक टन कचरे का परीक्षण निपटारा (ट्रायल रन) किया जाएगा। पहला ट्रायल 27 फरवरी को 10 टन कचरे का होगा, जिसकी प्रक्रिया 3-4 दिन चलेगी। यदि कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता, तो दूसरा ट्रायल 4 मार्च और तीसरा ट्रायल 10 मार्च 2025 को होगा। परीक्षण के नतीजों के आधार पर बाकी कचरे का निपटारा किया जाएगा और एक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की जाएगी।
नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित है यह देखेगा सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई में यह देखेगा कि क्या खतरनाक कचरे के निपटारे में सुरक्षा सुनिश्चित हुई है? अदालत ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई गंभीर खतरा प्रतीत हुआ, तो कचरे के निपटारे पर रोक लगाई जा सकती है। वहीं, सरकार और प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि कचरे का निपटारा पूरी सुरक्षा और वैज्ञानिक मानकों के तहत किया जाए। भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे के निपटान को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आगे का रास्ता तय होगा।