नर्मदा तट के दोनों ओर 300 मीटर के क्षेत्र में निर्माण पर प्रतिबंध रहेगा, यह क्षेत्र खुला रखा जाएगा: हाई कोर्ट

जबलपुर
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के प्रशासनिक न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ ने विगत छह वर्ष से विचाराधीन नर्मदा मिशन और समर्थ गऊ चिकित्सा केंद्र की जनहित याचिका पर अंतिम आदेश सुना दिया है। जिसमें साफ किया गया है कि नर्मदा तट के दोनों ओर 300 मीटर के क्षेत्र में निर्माण पर प्रतिबंध रहेगा। यह 300 मीटर का क्षेत्र खुला रखा जाएगा। कोर्ट ने संशोधित विकास योजना 2021 का गंभीरता से पालन सुनिश्चित करने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। इस मामले में 27 फरवरी को उभयपक्षों की बहस पूरी होने के साथ ही सुरक्षित किया गया आदेश शनिवार, एक मार्च को बाहर आया। हाई कोर्ट ने इससे पूर्व भी एक जनहित याचिका पर 13 दिसंबर, 2013 को महत्वपूर्ण आदेश पारित किया था, जिसमें व्यवस्था दी थी कि नर्मदा तट के दोनों ओर 300 मीटर के दायरे में निर्माण पर रोक रहेगी।

अवैध निर्माण किए गए हैं
नर्मदा मिशन और समर्थ गऊ चिकित्सा केंद्र की ओर से 2019 में जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि नर्मदा तट के प्रतिबंधित क्षेत्र में बहुत से अवैध निर्माण किए गए हैं। कई निर्माण जारी हैं। याचिका में कहा गया कि मास्टर प्लान 2021 में नर्मदा तट से नदी के उच्चतम बाढ़ स्तर तक के 300 मीटर दायरे में कोई भी निर्माण नहीं होगा। वहीं राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने नर्मदा तट से दोनों ओर 300 मीटर के क्षेत्र में निर्माण प्रतिबंध किया था। सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि सरकार ने पांच अक्टूबर, 2015 को अधिसूचना जारी कर यह स्पष्ट किया था कि नर्मदा नदी के तटीय क्षेत्र के दोनों ओर 300 मीटर, परियट के दोनों ओर 100 मीटर तथा गौर नदी के दोनों ओर 50 मीटर खुला क्षेत्र (नो कंस्ट्रक्शन जोन) रखा जाएगा।

इस अधिसूचना के आधार पर विकास योजना 2021 तैयार की गई है। खुले क्षेत्र में सामाजिक वानिकी, लैंडस्केप, गार्डन, पार्किंग, पंप हाउस और वाचमैन हाउस बनाने की छूट रहेगी। दरअसल, यह जनहित याचिका लंबित रहने के दौरान यह तथ्य रेखांकित हुआ था कि जबलपुर के तिलवारा घाट अंतर्गत प्रतिबंधित क्षेत्र में एक धर्म विशेष का निर्माण प्रस्तावित है। वर्ष 2019 में केंद्र की ओर से अंडरटेकिंग दी गई थी हाई कोर्ट के आदेश के बिना कोई निर्माण नहीं किया जाएगा। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में सक्षम अधिकारियों को निर्देश दिया हैं कि विकास योजना के अंतर्गत इस बात का सत्यापन कर लें कि उक्त प्रस्ताव प्रतिबंधित क्षेत्र के दायरे में है या उससे बाहर है। यह प्रक्रिया दो सप्ताह में पूरी करें।

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