अपने देश को इंडिया नहीं भारत कहना चाहिए : सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले

नागपुर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा है कि अपने देश को इंडिया नहीं, भारत कहना चाहिए। नोएडा में 'विमर्श भारत का' पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में सरकार्यवाह ने देश को दो नामों, भारत और इंडिया के नाम से पुकारे जाने पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि देश को दो नामों से क्यों जाना जा रहा। इसपर प्रश्न उठाना चाहिए।

दत्तात्रेय ने कहा कहा, 'पिछले दिनों सरकार ने जी20 सम्मेलन में राष्ट्रपति आवास पर भोज के लिए निमंत्रण में रिपब्लिक ऑफ भारत लिखा। भारत के नाम को इंडिया नहीं कहना चाहिए, वह इंग्लिश में इंडिया है और भारत के वासियों के लिए भारत है, ऐसा हो सकता है दुनिया में कहीं। कॉन्स्टीट्यूशन ऑफ इंडिया- भारत का संविधान, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया- भारत का रिजर्व बैंक… प्रश्न उठना चाहिए। इसे ठीक करना ही पड़ेगा। भारत है तो भारत ही कहो।'

आरएसएस के सरकार्यवाह ने कहा कि भारत की राष्ट्रीयता के संबंध में कई विचार आए, जो टूट गया क्या वही भारत है? क्या भारत एक जमीन का टुकड़ा है? या संविधान से चलने वाला केवल एक भारत है? केवल ऐसा नहीं है, भारत एक जीवन दर्शन है, आध्यात्मिक प्रतिभूत है। विश्व को संदेश देने वाला विश्वगुरु है।

उन्होंने कहा कि भारत के संबंध में बहुत भ्रामक बातें फैलाई गईं। भारत को कहा गया कि भारत केवल एक कृषि प्रधान देश है, यहां किसी भी प्रकार का उद्योग नहीं है, जबकि यह सत्य नहीं है। 1600 ईस्वी में भारत की विश्व व्यापार में लगभग 23 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी तो यह केवल क्या कृषि की थी, ऐसा नहीं है। अगर हम वैश्विक दृष्टि से देखें तो प्राचीन समय से ही हम किसी भी क्षेत्र में कम नहीं थे। हमने अपने स्वाभिमान को खोया। हमारी शिक्षा पद्धति नष्ट हुईं, जो बाहरी आक्रांता आए उन्होंने हमारे देश का दमन किया।

दत्तात्रेय ने कहा कि आज भारत स्वतंत्र है, उसका मस्तिष्क स्वतंत्र है। पहले के दशकों में पढ़ाया जाता था कि भारत का गणित और विज्ञान के क्षेत्र में कोई योगदान नहीं है। भारत के इतिहास को तोड़ा और मरोड़ा गया है, जबकि भारत का इतिहास समृद्धि से भरा पड़ा है। आज यह महत्वपूर्ण है कि विश्व के बहुत से लोग भारत के बारे में एक सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। उन्होंने कहा कि भारत का मूल परिचय संस्कृति का परिचय है। आचरण के महान आदर्श हैं।

उन्होने कहा कि भारत में हमारे जो पूर्वज थे, उन्होंने निश्चय कर लिया था कि किसी भी स्थिति में अपनी संस्कृति की रक्षा करनी है और अपने विचार को बचा कर रखना है। काल के प्रवाह में भी इस देश की संस्कृति कभी नष्ट नहीं हुई, हमारे देश के मनीषियों ने इसे अलग-अलग रूप में प्रस्तुत किया है।

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