US का तालिबान को दिया तोहफा, अमेरिकी नागरिक की रिहाई के बाद हक्कानी के ऊपर से हटाया इनाम

वाशिंगटन
संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफगान तालिबान के साथ अपने रिश्तों को सुधारने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। अफगान तालिबान ने दो सालों से कैद में बैठे अमेरिकी शख्स को पिछले हफ्ते रिहा कर दिया था। इसके बाद अब अमेरिकी सरकार ने भी तालिबान के तीन प्रमुख नेताओं सिराजुद्दीन हक्कानी, अब्दुल अजीज हक्कानी, याह्या हक्कानी पर से कई मिलियन डॉलर के भारी भरकम इनाम हटा लिया है। अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्रालय ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि तीन लोगों पर से अमेरिका इनाम को हटाया गया है इनमें से दो सगे भाई हैं, जबकि तीसरा उनका ही चचेरा भाई है। अमेरिका ने इनकी सूचना देने पर यह इनाम रखा गया था।

रिपोर्ट के मुताबिक, हक्कानी के ऊपर रखे गए इनाम को हटाने की घोषणा शनिवार को ही कर दी गई थी। लेकिन इसके बाद भी अभी तक एफबीआई की वेबसाइट से इनाम की सूची में से हक्कानी का नाम नहीं हटाया गया है। इस सूची में कहा गया है कि हक्कानी के ऊपर अफगानिस्तान में संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो के सैनिकों के खिलाफ सीमा पार हमलों की व्यवस्था करने और उनमें भाग लेने का आरोप है।

हक्कानी के ऊपर से इनाम हटाने का निर्णय गुरुवार को तालिबान द्वारा अमेरिकी नागरिक को रिहा करने के बाद लिया गया। अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इसके बारे में जानकारी देते हुए सोशल मीडिया पर की गई पोस्ट में लिखा कि जॉर्ज ग्लीजमैन, जिन्हें ढाई साल से अफगानिस्तान में गलत तरीके से गिरफ्तार करके रखा गया था उन्हें रिहा कर दिया गया है। 65 साल के ग्लीजमैन को ढाई साल पहले उस वक्त तालिबान द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था, जब वह अफगानिस्तान की यात्रा पर गए हुए थे। न्यूयार्क पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने ट्रम्प के विशेष बंधक दूत एडम बोहलर, तालिबान अधिकारियों और कतर के अधिकारियों द्वारा मध्यस्थता की गई बातचीत के बाद उन्हें रिहा किया।

अमेरिका द्वारा तालिबानी नेताओं के ऊपर से इनाम हटाने के इस घटनाक्रम को तालिबान द्वारा एक जीत के रूप में देखा जा रहा है। एक अधिकारी शफी आजम ने इस पूरे घटनाक्रम को 2025 में दोनों देशों के बीच में संबंधों के सामान्यीकरण की शुरुआत बताते हुए कहा कि इस के बाद दोनों देशों के संबंधों में सामान्य होने की शुरुआत मान सकते हैं। इससे पहले तालिबान ने घोषणा की थी कि वह नॉर्वे में अफगानिस्तान के दूतावास पर नियंत्रण कर रहा है। 2021 में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से चीन अफगान राजनयिकों को स्वीकार करने वाला पहला देश रहा। कई अन्य देशों ने भी तालिबान के प्रतिनिधियों को स्वीकार किया है।

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