मुख्यमंत्री ने ‘नए दौर की भागदौड़ में पीछे छूटते भारतीयता के संस्कार’ विषय पर आयोजित ‘की-नोट’ एड्रेस में रखे अपने विचार

रायपुर : नई शिक्षा नीति में शिक्षा के साथ रोजगार भी है और संस्कार भी : मुख्यमंत्री विष्णु देव साय

मुख्यमंत्री ने 'नए दौर की भागदौड़ में पीछे छूटते भारतीयता के संस्कार' विषय पर आयोजित 'की-नोट' एड्रेस में रखे अपने विचार

नए दौर की भागदौड़ में पीछे छूटते भारतीयता के संस्कारों के दौर में समाज को सकारात्मक दिशा देना अत्यंत आवश्यक  : मुख्यमंत्री विष्णु देव साय

रायपुर

नए दौर की भागदौड़ में पीछे छूटते भारतीयता के संस्कारों के दौर में समाज को सकारात्मक दिशा देना अत्यंत आवश्यक है। आज विदेशी हमारी संस्कृति से प्रभावित हो रहे हैं। प्रयागराज महाकुंभ में बड़ी संख्या में पश्चिमी देशों के लोग श्रद्धा से गंगा स्नान करने पहुँचे। दूसरी ओर, हम दिखावे और आडंबर के चलते अपनी महान संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं और पाश्चात्य संस्कृति को अपना रहे हैं। हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा लागू की गई नई शिक्षा नीति में शिक्षा के साथ-साथ रोजगार और संस्कार दोनों सम्मिलित हैं। मुख्यमंत्री साय राजधानी के बेबीलोन कैपिटल होटल में पत्रिका समूह द्वारा आयोजित 'की-नोट' एड्रेस में अपने विचार व्यक्त करते हुए यह बात कही।

मुख्यमंत्री साय ने कहा कि मैं गुलाब कोठारी को बधाई देना चाहता हूं कि वे अपनी लेखनी के माध्यम से समाज को निरंतर सकारात्मक दिशा दे रहे हैं। पत्रिका समूह के दायित्वों के साथ-साथ वे जो समय निकाल रहे हैं, उसे सामाजिक चेतना के लिए समर्पित कर रहे हैं – यह अत्यंत सराहनीय है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारा देश सदियों तक विश्व गुरु रहा है। नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों में पूरी दुनिया से छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते थे। हमारा सनातन धर्म अत्यंत प्राचीन है, जिसकी मूल भावना 'वसुधैव कुटुम्बकम्' है – अर्थात् पूरा विश्व एक परिवार है।

मुख्यमंत्री साय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा लागू की गई नई शिक्षा नीति को छत्तीसगढ़ ने अपनाया है। इस नीति में शिक्षा के साथ-साथ रोजगार और संस्कार दोनों को प्राथमिकता दी गई है। इसके माध्यम से हम पुनः अपनी गौरवशाली सभ्यता की ओर अग्रसर हो रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्राचीन काल से ही भारत में नारी का सम्मान सर्वोपरि रहा है। हमारे यहां कहा गया है– 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः', अर्थात जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवताओं का वास होता है। हमारे धर्म में भगवान के नाम से पहले देवी का नाम आता है– जैसे उमापति महादेव, सियापति राम, राधाकृष्ण आदि। हम माँ सरस्वती से विद्या, माँ लक्ष्मी से धन और माँ दुर्गा से शक्ति की कामना करते हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी' का अर्थ है – माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं। माता-पिता ही बच्चे के प्रथम गुरु होते हैं, और जैसा वे सिखाते हैं, बच्चे वही सीखते हैं। हमारी सभ्यता आज भी जीवित है, जो हमारी शक्ति का प्रमाण है।

उन्होंने कहा कि आज हमारे परिवारों में एक गंभीर समस्या यह है कि हम बच्चों को मोबाइल थमा रहे हैं। मोबाइल में अच्छाई और बुराई दोनों हैं। हमें चाहिए कि हम उसमें से अच्छाई को चुनें – जैसे हंस दूध को ग्रहण करता है, वैसे ही हमें भी विवेकपूर्वक चयन करना चाहिए।

पत्रिका समूह के चेयरमैन गुलाब कोठारी ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने की शक्ति केवल माँ के पास है। माँ सूक्ष्म स्तर पर जीवन जीती है। उसमें अन्न ब्रह्म और शब्द ब्रह्म दोनों विद्यमान हैं। माँ ही जीवन का पोषण करती है। आधुनिक शिक्षा ने माँ की भूमिका को कमज़ोर कर दिया है, जबकि शरीर और आत्मा दोनों के पोषण की शक्ति माँ के पास ही है। आज माँ-बाप और बच्चों के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि सिर्फ बौद्धिक विकास जीवन में सुख की गारंटी नहीं देता।

कोठारी ने कहा कि अगर हम बदलती दुनिया में भी अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखें, तो ही हम विश्व को कुछ देने योग्य बन पाएंगे। भारतीय दर्शन हमें सिखाता है कि हम केवल शरीर नहीं, आत्मस्वरूप हैं। सूचना और ज्ञान बाहर से आते हैं, लेकिन विज़न और जीवन की दिशा भीतर से आती है। आज यही 'भीतर' हमसे छूट रहा है। आधुनिक शिक्षा ने हमें मानव संसाधन बना दिया है, जबकि हमें अपनी संस्कृति को जीवित रखना आवश्यक है।

आईआईएम के डायरेक्टर प्रो. रामकुमार काकानी ने कहा कि आज पीढ़ियों के बीच जो खाई उत्पन्न हुई है, उसे पाटना ज़रूरी है। नई पीढ़ी की दुनिया अलग है – उस पर अधिक दबाव है, चौबीसों घंटे विज्ञापनों का असर है, और परिवार भी छोटे होते जा रहे हैं। संचार और तकनीक के प्रसार ने पीढ़ियों के बीच की दूरी और बढ़ा दी है। पहले की पीढ़ियों में अनुशासन और सीमित साधन होते थे, आज की पीढ़ी प्रतिस्पर्धा के दबाव में है। इससे पारिवारिक ढांचा भी बदला है, और भावनात्मक दूरी भी आई है।

उन्होंने कहा कि हमें साझा मूल्यों की पुनः पहचान करनी होगी। नई पीढ़ी को सहानुभूति और स्पष्ट लक्ष्यों के साथ प्रेरित करना होगा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और खुले वातावरण में संवाद को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। अगर हम ऐसा करें, तो पीढ़ियों के बीच की दूरी को पाटा जा सकता है।

कार्यक्रम में कोंडागांव की युवा उद्यमी सुअपूर्वा त्रिपाठी ने भी विचार रखे। इस अवसर पर विधायक सुनील सोनी, पुरंदर मिश्रा, रायपुर की महापौर श्रीमती मीनल चौबे, पद्मश्रीमती फुलबासन यादव,  पत्रिका के स्टेट एडिटर पंकज श्रीवास्तव सहित पत्रिका समूह के अनेक सदस्य व गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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