अल्ताफ हुसैन जिन्होंने पाकिस्तान में मुहाजिरों को बचाने के लिए पीएम मोदी से मांगी मदद?

नई दिल्ली
 पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान और पीओके में ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया था, जिसके बाद पाकिस्तान ने भारत पर ड्रोन और मिसाइल से हमले की कोशिश की थी। इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा हुआ है।

इस बीच पाकिस्तान के निर्वासित नेता और मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के फाउंडर अल्ताफ हुसैन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद की गुहार लगाई है। उन्होंने पीएम मोदी से मुहाजिरों को बचाने का अनुरोध किया है।

क्या अनुरोध किया?

अल्ताफ हुसैन ने पीएम मोदी से अनुरोध करते हुए कहा कि बंटवारे के बाद भारत से आकर पाकिस्तान में बसे उर्दू बोलने वाले शरणार्थियों यानी मुहाजिरों के उत्पीड़न का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाए।

लंदन में एक कार्यक्रम के दौरान हुसैन ने यह अपील की। इसके साथ ही उन्होंने बलोच लोगों का समर्थन करने के लिए पीएम मोदी की प्रशंसा की और इसे साहसी और नैतिक रूप से सराहनीय कदम बताया।

अल्ताफ का PAK पर आरोप

अल्ताफ हुसैन ने पीएम मोदी से आग्रह करते हुए मुहाजिर समुदाय के लिए भी आवाज उठाने को कहा है। उन्होंने कहा कि मुहाजिरों का दशकों से उत्पीड़न और उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है, जो पूरी तरह से स्टेट स्पॉन्सर है।

उन्होंने कहा कि भारत के बंटवारे के बाद से पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठानों ने कभी भी मुहाजिरों को देश के वैध नागरिकों के तौर पर पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया। MQM लगातार मुहाजिरों के अधिकार की पैरवी करती रही है लेकिन सैन्य कार्रवाई में अब तक 25000 से ज्यादा मुहाजिरों की मौत हो गई और हजारों गायब कर दिए गए हैं।

'मुहाजिरों की आवाज दबाई जा रही है'

अल्ताफ हुसैन का कहना है कि अमेरिका के ह्यूस्टन में पाकिस्तानी काउंसिल जनरल आफताब चौधरी ने कार्यक्रम के दौरान एक वीडियो पेश किया, जिसमें अल्ताफ और MQM को भारत का एजेंट दिखाया गया है।

अल्ताफ ने कहा कि पाकिस्तान द्वारा इस तरह का आरोप लगाकर मुहाजिरों की आवाज दबाने का काम किया जाता है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुहाजिरों की आवाज उठाएं और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन समुदाय के लोगों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करें।

कौन हैं अल्ताफ हुसैन जिन्होंने पीएम मोदी से मांगी मदद?

पाकिस्तान और भारत में चल रहे तनाव के बीच पाकिस्तान के निर्वासित नेता और मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के संस्थापक अल्ताफ हुसैन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुहाजिरों को बचाने की अपील की है. मुहाजिर उर्दू बोलने वाले वो मुसलमान हैं जो भारत से विभाजन के बाद पाकिस्तान, खासतौर से कराची शहर में बस गए थे. पाकिस्तान की सत्ता पर कभी मजबूत पकड़ रखने वाले मुहाजिरों की हालत दशकों से खराब है और पाकिस्तान में उन्हें भेदभाव और उत्पीड़न झेलना पड़ता है.

पाकिस्तान में मुहाजिरों की हालत पर बात करते हुए अल्ताफ हुसैन ने लंदन के एक प्रोग्राम में पीएम मोदी से मुहाजिरों की रक्षा की अपील की.

हुसैन ने कहा कि पीएम मोदी ने बलोच लोगों के अधिकारों का समर्थन किया है जो कि साहसी कदम है और उन्हें मुहाजिर समुदाय के लिए भी इसी तरह से समर्थन जताना चाहिए. लंदन में निर्वासित जीवन जी रहे MQM नेता ने कहा कि उनकी पार्टी लगातार समुदाय के अधिकारों की पैरवी करती है.

उन्होंने पाकिस्तानी सेना पर आरोप लगाते हुए कहा कि सैन्य कार्रवाई में अब तक 25,000 से ज्यादा मुहाजिरों की मौत हो गई है और हजारों गायब कर दिए गए हैं. उन्होंने पीएम मोदी से अपील की कि वो मुहाजिरों की आवाज को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाएं.

आज पीएम मोदी से मुहाजिरों की आवाज उठाने की अपील करने वाले अल्ताफ हुसैन ने कुछ सालों पहले पीएम मोदी से भारत में शरण देने की मांग की थी. नवंबर 2019 में हुसैन ने पीएम मोदी से भारत में राजनीतिक शरण की मांग करते हुए कहा था कि उन्हें भारत में शरण दी जाए ताकि वो भारत में दफनाए गए अपने पुरखों की कब्रों पर जा सकें. उस दौरान ब्रिटेन की पुलिस ने उनके खिलाफ घृणा फैलाने और आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोप में मामला दर्ज किया था और वो जमानत पर बाहर थे. अल्ताफ हुसैन की राजनीतिक शरण की मांग पर तब भारत ने कोई ध्यान नहीं दिया था.

उधर, पाकिस्तान की सरकार हमेशा से बेबुनियाद आरोप लगाती रही है कि हुसैन और उनकी पार्टी भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) के एजेंट हैं.

कभी कराची में अल्ताफ हुसैन का डंका बजता था

अल्ताफ हुसैन का जन्म 1953 में सिंध के कराची शहर में एक मध्यम-वर्गीय परिवार में हुआ था. उनका परिवार उत्तर प्रदेश से था जो विभाजन के बाद पाकिस्तान चला गया. कराची विश्वविद्यालय से हुसैन ने फार्मेसी की पढ़ाई की लेकिन झुकाव राजनीति की तरफ रहा. हुसैन ने देखा कि मुहाजिरों के प्रभाव में कमी आ रही है. जो मुहाजिर एक वक्त काफी संपन्न थे, कारोबार और सिविल सर्विस में सबसे आगे थे, सत्ता पर जिनका प्रभाव था, 1970 का दशक खत्म होते-होते उनका प्रभाव कमजोर पड़ने लगा. मुहाजिरों की जगह धीरे-धीरे सिंधी और पंजाबी लेते चले गए.

ऐसे माहौल में मुहाजिरों का नेतृत्व करने के लिए अल्ताफ हुसैन आगे आए और उन्होंने 1984 में एमक्यूएम पार्टी की स्थापना की.

पार्टी को कराची में लोगों का खूब समर्थन मिला और तीन साल बाद ही सिंध के शहरी इलाकों में पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की. पाकिस्तान की संसद, नेशनल एसेंबली में एमक्यूएम जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी और फिर दशकों तक कराची पर पार्टी का राजनीतिक दबदबा कायम रहा.

कराची शहर पर अल्ताफ हुसैन का दबदबा इतना ज्यादा था कि उनकी एक आवाज पर शहर में कर्फ्यू जैसे हालात बन जाते थे. उनका खौफ भी बढ़ता गया और जो लोग उनसे असहमति जताते, उनकी लाश बोरियों में मिलने लगी. अस्सी के दशक में कराची में बोरी बंद लाशों का मिलना काफी बढ़ गया जिसके बाद पुलिस ने हुसैन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.  

1990 का दशक आते-आते अल्ताफ हुसैन के नाम हत्या के दर्जनों मामले दर्ज हो गए और हालात इतने बदतर हो गए कि 1992 में उन्हें पाकिस्तान छोड़कर ब्रिटेन में शरण लेनी पड़ी.

ब्रिटेन में शरण से पहले उनपर कई हमले भी हुए. एक हमले में उन्होंने अपने भाई और भतीजे को खो दिया. हमलों में वो खुद भी घायल हुए. 1992 में उन्हें ब्रिटेन में शरण और फिर बाद में चलकर ब्रिटिश नागरिकता भी मिल गई.

ब्रिटेन जाकर भी कराची में अल्ताफ हुसैन का जलवा कायम रहा. वो लंदन में रहकर ही फोन के जरिए कराची में सभाओं को संबोधित करते और अपने विरोधियों को धमकी देते.

लेकिन 2014 के आते-आते कराची में अल्ताफ हुसैन की प्रभाव कमजोर पड़ा. अगले ही साल 2015 में उन्होंने भारत को लेकर एक बयान दिया था जिसपर काफी हंगामा भी मचा था. उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान में मुहाजिरों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार और उनकी दुर्दशा पर भारत को शर्मिंदा होना चाहिए.

पाकिस्तान में मुहाजिरों की स्थिति

पाकिस्तान में मुहाजिरों के साथ भेदभाव और उनके उत्पीड़न की घटनाएं दशकों से जारी हैं. कराची की बात करें तो वहां करीब डेढ़ करोड़ लोग रहते हैं जिनमें सबसे अधिक संख्या मुहाजिरों की है. पाकिस्तान को सबसे अधिक राजस्व भी कराची शहर से ही मिलता है बावजूद इसके, पाकिस्तान की सरकारें मुहाजिरों का उत्पीड़न करती आई हैं.

मुहाजिरों को सेना और पुलिस में नौकरी नहीं दी जाती है और सुरक्षाबलों द्वारा उनके जबरन अपहरण की खबरें आती रही हैं. बताया जाता है कि फिरौती के बाद मुहाजिरों को रिहा किया जाता है. फिरौती न देने पर उन्हें फर्जी केस में फंसा दिया जाता है या फिर बेरहमी से मार दिया जाता है. मुहाजिरों को सिंधी और पंजाबी हेय दृष्टि से देखते हैं.

 

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