बिहार में महागठबंधन से ओवैसी की टूटी आस, तीसरा मोर्चा बनाएगी AIMIM

पटना
 बीजेपी की 'बी' टीम कहलाने वाली एआईएमआईएम आखिर क्यों आगामी बिहार विधान सभा चुनाव महागठबंधन के साथ लड़ना चाहती है? आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है, जिसने एआईएमआईएम को महागठबंधन के साथ मिल कर बिहार में चुनावी रणनीति बनाने को बाध्य कर गई? इस नई रणनीति के पीछे एआईएमआईएम की क्या है प्लानिंग, क्या है चुनावी रणनीति?

क्या है एआईएमआईएम की नई घोषणा?
बिहार विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही हैदराबाद के सांसद और AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने आगे की राजनीति महागठबंधन के साथ करने की इच्छा व्यक्त की है। वे इन दिनों महागठबंधन के नेताओं से संपर्क में भी हैं। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का मकसद भी साफ है कि एनडीए को किसी भी तरह बिहार की सत्ता पर आसीन नहीं होने देना है। हालांकि, अभी तक महागठबंधन की तरफ से कोई निर्णय नहीं आया है।

2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम, उपेंद्र कुशवाहा की तब की पार्टी आरएलएसपी, मायावती की बीएसपी, देवेंद्र प्रसाद यादव की एसजेडीडी, ओम प्रकाश राजभर की एसबीएसपी और संजय चौहान की जनवादी पार्टी ने ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट बनाया था। रालोसपा 104, बसपा 80, सजद-डी 25, एआईएमआईएम 19, सुभासपा 5 और जनवादी पार्टी 5 सीट लड़ी थी। इसमें सिर्फ एआईएमआईएम के 5 और बसपा के 1 कैंडिडेट जीत पाए थे। ओवैसी की पार्टी के 4 विधायकों को तेजस्वी ने बाद में राजद में शामिल कर लिया।

बिहार में एआईएमआईएम के सबसे बड़े नेता और इकलौते बचे विधायक अख्तरुल ईमान ने कहा है कि उनकी पार्टी एनडीए और महागठबंधन से अलग रास्ता लेगी। महागठबंधन दलों की घोषणा पत्र कमिटी की आज पटना में मीटिंग है लेकिन पहले की बैठकों की तरह एआईएमआईएम को इसमें भी बुलावा नहीं आया। महागठबंधन से भाव या निमंत्रण नहीं मिलने के बाद पार्टी ने तीसरा मोर्चा बनाने की कसरत शुरू कर दी है। ईमान ने पिछले दिनों कहा था कि पार्टी महागठबंधन से प्रस्ताव का इंतजार करेगी।

B टीम की दाग को मिटाना मकसद
हैदराबाद के सांसद और AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने महागठबंधन के साथ गठबंधन करने की बात कर राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया है। दरअसल, AIMIM को लेकर ये धारणा बन गई कि ये बीजेपी की बी टीम है और बीजेपी को जीत दिलाने के लिए लड़ती है। वजह यह थी कि एआईएमआईएम के उम्मीदवार मुस्लिम का वोट काट कर राजद को सीधे-सीधे नुकसान पहुंचा रहे थे। पिछले चुनाव को ही लें तो सीमांचल में AIMIM को पांच विधानसभा में जीत मिली पर कई विधानसभा सीटों पर ये राजद के हार के कारण बने। वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के पास होने के बाद मुस्लिम और इनकी पार्टियों में एक बदलाव आया है। इस बार बिहार को लेकर कहा जा रहा है कि मुस्लिम वोट का डिवीजन नहीं हो रहा है। ये संगठित रूप से महागठबंधन की तरफ जाता दिख रहा है। ऐसे में राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि AIMIM अकेले लड़ कर बीजेपी की बी टीम के लांछन से छुटकारा पाएगी और मुस्लिम मतों की गोलबंदी का हिस्सेदार भी बनेगी।

पार्टी का विस्तार, सत्ता में भागीदारी की नींव
AIMIM का विस्तार भी एक कारण हो सकता है। अभी तक पार्टी वही अच्छा प्रदर्शन कर पाई है जहां मुस्लिम मतों की तादाद बहुत है। इस वजह से पार्टी केवल सीमांचल तक में ही सफल हुई है। महागठबंधन के साथ जाकर पार्टी का विस्तार मध्य बिहार और दक्षिण बिहार में भी हो सकता है। तब AIMIM को सहयोगी दलों का भी मत मिलेगा। गठबंधन की राजनीति के साथ सत्ता में भागीदारी की तरफ भी AIMIM का रुझान हो सकता है। गठबंधन की राजनीति में शामिल होकर जिस तरह से वीआईपी सत्ता में भागीदारी चाह रही है, संभव है AIMIM भी सत्ता में भागीदारी की इच्छा रखती हो।

 

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