क्या CJI कानून से ऊपर हैं? जस्टिस वर्मा ने मीडिया ट्रायल और न्याय व्यवस्था पर उठाए 6 अहम सवाल

नई दिल्ली
केंद्र सरकार की ओर से महाभियोग की तैयारी के बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। 14 मार्च को उनके दिल्ली स्थित आवास पर बड़े पैमाने पर कैश पाए जाने की खबर मिली थी। इसके बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित जांच समिति ने दोषी पाया था। उस रिपोर्ट के बाद उनका इलाहाबाद ट्रांसफर किया गया और राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री को आगे की कार्रवाई के लिए रिपोर्ट भेज दी गई थी। अब इस रिपोर्ट के आधार पर ही महाभियोग चलाने की तैयारी है, लेकिन जस्टिस वर्मा ने रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। उन्होंने इसके खिलाफ 6 अहम दलीलें दी हैं।

'मेरा मीडिया ट्रायल हुआ, छवि ही खराब हो गई'
जस्टिस यशवंत वर्मा ने सबसे बड़ा आरोप मीडिया ट्रायल का लगाया है। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से उन पर लगे आरोपों को सार्वजनिक किया गया और इसके चलते मेरा मीडिया ट्रायल हुआ है। उन्होंने कहा कि इससे मेरी छवि खराब हुई है और मेरे करियर पर भी असर पड़ा है। जस्टिस वर्मा ने दलील दी है कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच की ओर से तय नियमों का भी इस तरह जानकारी सार्वजनिक करके उल्लंघन किया गया है। उन्होंने कहा कि मीडिया में कमेटी की फाइनल रिपोर्ट छपी है और इस तरह गोपनीयत का उल्लंघन किया गया।

इन हाउस जांच पर उठाए सवाल, बोले- कमजोर होती है संसद
जस्टिस वर्मा ने एक तर्क यह भी दिया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1999 में न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों से निपटने के लिए अपनाई गई इन-हाउस प्रक्रिया अनुचित रूप से आत्म-नियमन के निर्धारित दायरे से परे चली जाती है। याचिका में कहा गया है कि इससे एक समानांतर और असंवैधानिक तंत्र तैयार होता है। यह संविधान के अनुच्छेद 124 और 218 के तहत निर्धारित अनिवार्य ढांचे को कमजोर करती है, जिनके अनुसार न्यायाधीशों को हटाने का विशेष अधिकार केवल संसद को प्राप्त है। उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था से संसद का अधिकार कमजोर होता है।

चीफ जस्टिस की पावर पर भी उठा दिए सवाल
जस्टिस वर्मा ने अपनी अर्जी में चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट की पावर तक पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि संविधान में कहीं भी सुप्रीम कोर्ट या चीफ जस्टिस को यह ताकत नहीं दी गई कि वह अपने जजों या फिर हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के खिलाफ ऐक्शन ले।

गवाहों के बयानों की रिकॉर्डिंग नहीं कराई, फुटेज पर भी सवाल
उन्होंने एक दलील यह भी दी है कि मेरे खिलाफ कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं हुई है। कुछ अप्रमाणित आरोपों के आधार पर ही मेरे खिलाफ जांच शुरू की गई। इसके अलावा उन्होंने आरोप लगाया कि जांच समिति ने उन्हें पक्ष रखने का मौका नहीं दिया। इसके अलावा गवाहों के बयानों पर भी सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि इन गवाहों के बयानों के एक हिस्से को ही बताया गया, जबकि उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग करानी चाहिए थी। इसके अलावा जांच समिति की ओर से सीसीटीवी फुटेज आदि न जुटाने पर भी जस्टिस वर्मा ने सवाल उठाए हैं।
'मेरे घर से कैश मिला तो कितना था और किसका था, यह नहीं बताया गया'

जस्टिस वर्मा ने यह भी कहा कि जब इस मामले का मुख्य आधार यही है कि मेरे घर से कैश पाया गया तो यह भी पता लगाना चाहिए था कि यह कितना था और कहां से आया था। उन्होंने कहा कि जांच समिति यह बताने में नाकाम रही है कि यह कैश कहां से आया था और कितना था।

'पहले मेरा पक्ष सुनते, फिर करनी थी महाभियोग की सिफारिश'
उनकी एक दलील यह भी है कि फाइनल रिपोर्ट की समीक्षा करने के लिए मुझे वक्त नहीं मिला। जस्टिस वर्मा का कहना है कि मुझे हटाने की सिफारिश से पहले जवाब लेना चाहिए था। इसके लिए मुझे कोई वक्त ही नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि मुझे चीफ जस्टिस या फिर वरिष्ठ जज के आगे पक्ष रखने का मौका मिलना चाहिए था। उसके बाद ही महाभियोग जैसी सिफारिश होनी चाहिए।

 

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