गुजरात HC का बड़ा फैसला: महिला को 27 साल बाद मिली राहत, जानिए कारण

राजकोट
27 साल तक चली सुनवाई के बाद, एक ट्रायल कोर्ट ने बच्चे की हत्या के मामले में राजकोट की एक महिला को उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने ट्रायल की कार्यवाही को जल्दबाजी करार देते हुए सजा को रद्द कर दिया। इस मामले को कोर्ट तक ले जाने में दो साल लगे थे। 1996 में अपने पड़ोसी के बच्चे की हत्या की आरोपी महिला पर आरोप तय करने में ट्रायल कोर्ट को 14 साल लगे और फिर ट्रायल चलाकर उम्रकैद की सजा सुनाने में 13 साल और लग गए।

रिपोर्ट के अनुसार, ताजा सुनवाई का आदेश देते हुए जस्टिस इलेश वोरा और जस्टिस पी.एम. रावल की डिविजन बेंच ने इस हफ्ते साइन किए हुए आदेश में कहा, "हमारे विचार से, ट्रायल कोर्ट ने पुराने मामलों का निपटारा करने के इरादे से, एक छोटा रास्ता अपनाया और सेशंस ट्रायल की प्रक्रिया का पालन किए बिना जल्दबाजी में ट्रायल का निपटारा कर दिया।"

यह मामला अरुणा उर्फ अनीता देवमुरारी से जुड़ा है, जिस पर फरवरी 1996 में राजकोट जिले के धोराजी शहर में एक पड़ोसी के 7 साल के बेटे की हत्या का आरोप लगा था। वह 1998 तक जेल में रही, जब हाईकोर्ट ने उसे नियमित जमानत दी। तब से वह फरार थी। जब हाईकोर्ट ने अदालतों को लंबे समय से लंबित मामलों का निपटारा करने का निर्देश दिया, तो धोराजी की एक ट्रायल कोर्ट ने 2024 में देवमुरारी के खिलाफ कार्यवाही शुरू की। चूंकि पुलिस उसे कोर्ट में पेश नहीं कर सकी, इसलिए उसकी अनुपस्थिति में ही मुकदमा चला।

मुख्य रूप से उसके पति की गवाही के आधार पर कि उसने बच्चे की हत्या की बात कबूल की थी, साथ ही 16 गवाहों के बयानों के आधार पर, कोर्ट ने उसे दोषी पाया और जून, 2025 में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सजा सुनाए जाने के कुछ ही घंटों के भीतर, पुलिस ने उसे वडोदरा से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। उसने हाईकोर्ट में सजा को चुनौती देते हुए कहा कि उसे अपना बचाव करने का कभी मौका नहीं दिया गया। हालांकि, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि सजा उचित थी, क्योंकि आरोपी इन सभी सालों से फरार थी।

दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद, जस्टिस वोरा और जस्टिस रावल की एक बेंच ने बुधवार को धोराजी की सेशंस कोर्ट को देवमुरारी के खिलाफ फिर से सुनवाई करने और छह महीने के भीतर इसे पूरा करने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 299 की ट्रायल कोर्ट की व्याख्या में गलती पाई। इसी के तहत कोर्ट ने 17 गवाहों की जाँच की और आरोपी की अनुपस्थिति में फ़ैसला सुनाया था।

इसके अलावा, हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने CrPC की धारा 313 के चरण को नज़रअंदाज़ कर दिया, जो गवाहों से जिरह पूरी होने के बाद आरोपी को सुनवाई का मौका देती है। हाईकोर्ट ने कहा, "ऐसी परिस्थितियों में, कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए मुकदमा नहीं चलाया गया, और निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांत की पूरी तरह से अवहेलना करते हुए मुकदमे का समापन किया गया।" कोर्ट ने कहा कि इस तरह की लापरवाही आरोपी के अधिकार के लिए गंभीर पूर्वाग्रह का कारण बनी, क्योंकि सजा अग्राह्य (inadmissible) सबूतों के आधार पर दर्ज की गई थी और वह भी आरोपी को बचाव का मौका दिए बिना।"

इन प्रक्रियात्मक चूकों (procedural lapses) के लिए, हाईकोर्ट ने कहा कि इसे वास्तविक सुनवाई नहीं कहा जा सकता और इसलिए इन असाधारण परिस्थितियों को देखते हुए मामले को फिर से सुनवाई (de novo or anew) के लिए ट्रायल कोर्ट में वापस भेज दिया गया है, ताकि देवमुरारी को उचित मौका दिया जा सके। हाईकोर्ट ने पुलिस की भी आलोचना की कि वह इतने लंबे समय तक आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर पाई और सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद उसे ढूंढ लिया। बेंच ने कहा, "यह ध्यान देना जरूरी है कि वारंट को थोड़े ही समय में पूरा कर लिया गया। यह दिखाता है कि धोराजी पुलिस, जो 1998 से 2025 तक वारंट को पूरा नहीं कर पाई थी, उसने सजा के बाद गिरफ्तारी वारंट को पूरा कर लिया।" बेंच ने आगे कहा, "तब, अभियोजन पक्ष के साथ-साथ कार्रवाई एजेंसी की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठता है।"

 

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