क्सर देखने में आता है कि छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाते। बिना मंजिल के सफलता नहीं मिलती। मंजिल या लक्ष्य का निर्धारण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि मुझ में कितनी योग्यता है और क्या-क्या कमियां हैं? मंजिल को प्राप्त 1करने के लिए हमें अपनी योग्यताओं का भरपूर उपयोग करके अपनी कमजोरियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। लक्ष्य यह सोचकर बनाना चाहिए कि इस काम को मैं पूरा कर सकता हूं।
जब मंजिल के निर्धारण में कठिनाई का अनुभव हो तो हमें अपनी अंतर्रात्मा की सहायता लेनी चाहिए क्योंकि आत्मबल सबसे बड़ा बल है। दूसरों के विचार पूछने पर हमें भिन्न-भिन्न विचार सुनने को मिलेंगे जिससे हमें अपनी मंजिल के निर्धारण में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है कि कौन-सा मार्ग अपनाएं। हमें परमेश्वर ने सोचने समझने की शक्ति दी है। यह सबसे अच्छा हो यदि अपनी मंजिल का निर्धारण हम स्वयं करें। हमें जो आज्ञा अपनी आत्मा या अंतरूकरण से प्राप्त होती है वह हर मौके पर सही
रहती है।
हमें अपने मार्ग में मिलने वाली असफलताओं की उपेक्षा करनी चाहिए और अपनी सफलताओं पर खुश नहीं होना चाहिए। मंजिल के मार्ग में आने वाली बाधाओं की चिंता नहीं करनी चाहिए और गलतियों को दोहराना नहीं चाहिए। एक कहावत है कि जो जैसा सोचता है, वैसा ही बनता है। कभी गलत ढंग से नहीं सोचना चाहिए और अपने को किसी से कम नहीं समझना चाहिए। जीवन में मिलने वाली असफलताओं से अनुभव प्राप्त होता है जिससे सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
प्रत्येक के विचार और सिद्घांत अलग-अलग होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने विचारों और सिद्घांतों को जीवन में उतारें। अपने लक्ष्य की प्राप्ति में वही व्यक्ति सफल हो सकता है जो कठिन परिश्रम कर सके। कल्पना मात्र करने से कोई व्यक्ति सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। कभी-कभी ऐसा लगता है कि कुछ युवा छोटी-सी बात पर निरुत्साहित होकर अपना धीरज छोड़ बैठते हैं और अपनी मंजिल को प्राप्त नहीं कर पाते।
केवल योजनाओं के निर्माण से कोई व्यक्ति सफल नहीं हो सकता बल्कि उन्हें पूर्ण करने के लिए सदैव परिश्रम करने के लिए तैयार रहना चाहिए। जीवन की सफलता के शिखर पर परिश्रम करने वाले व्यक्ति ही पहुंचते हैं। तो आइए, सबसे पहले हम अपनी मंजिल का निर्धारण करके अपनी कमजोरियों को दूर करते हुए उचित परिश्रम करें।