महिलाओं के लिए छठ का महत्व: कठिन व्रत में छिपा सुख और समर्पण

लोक आस्था का महापर्व ‘छठ पूजा’ न केवल बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है. यह चार दिवसीय व्रत कठोर तपस्या, प्रकृति प्रेम और सूर्य देव के प्रति अटूट आस्था का प्रतीक है. दिवाली के ठीक बाद, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तक मनाया जाने वाला यह पर्व महिलाओं द्वारा मुख्य रूप से अपनी संतान की लंबी आयु, परिवार के सुख-समृद्धि और मनोवांछित संतान की प्राप्ति के लिए रखा जाता है. आइए, जानते हैं कि महिलाएं क्यों रखती हैं यह कठिन व्रत और क्या है इसका महत्व.

संतान सुख की कामना और छठी मैया का आशीर्वाद

छठ व्रत का सबसे बड़ा और प्राथमिक महत्व संतान सुख से जुड़ा है.

संतान की दीर्घायु और कुशलता: महिलाएं अपनी संतान की रक्षा, अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए यह 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं.

संतान प्राप्ति का वरदान: यह व्रत नि:संतान दंपत्तियों के लिए भी बहुत लाभदायक माना जाता है. मान्यता है कि छठी मैया (षष्ठी देवी) की आराधना से उन्हें पुत्र या पुत्री रत्न की प्राप्ति होती है और उनकी सूनी गोद भर जाती है.

छठी मैया कौन हैं?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठी मैया को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है. वे सृष्टि की रचना करने वाली देवी प्रकृति का छठा अंश हैं. यह भी मान्यता है कि ये सूर्य देव की बहन हैं, इसलिए छठ पर्व पर सूर्य के साथ छठी मैया की भी पूजा की जाती है.

सूर्य देव की उपासना से आरोग्य और सौभाग्य
छठ पूजा में प्रत्यक्ष देवता सूर्य देव की उपासना की जाती है. सूर्य को आरोग्य, ऊर्जा और जीवन का दाता माना गया है.

स्वास्थ्य और रोगों से मुक्ति: सूर्य को आरोग्य का देवता कहा जाता है. छठ व्रत रखने से व्रतियों और उनके परिवार को उत्तम स्वास्थ्य, तेज और दीर्घायु की प्राप्ति होती है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी, सुबह और शाम के समय सूर्य को अर्घ्य देने से सूर्य की ऊर्जा शरीर को लाभ पहुंचाती है और रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है.

सुख-समृद्धि और सौभाग्य: सूर्य देव को अर्घ्य देने से कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होता है. सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए भी यह व्रत रखती हैं.

छठ व्रत इतना कठिन क्यों?
निर्जला व्रत (36 घंटे तक): यह व्रत लगभग 36 घंटों तक चलता है, जिसमें व्रती (व्रत रखने वाला) को न तो कुछ खाना होता है और न ही पानी पीना होता है. इतने लंबे समय तक बिना पानी के रहना शारीरिक सहनशक्ति की एक कठिन परीक्षा है.

कठोर शुद्धता और नियम: छठ पर्व की शुरुआत से लेकर समापन तक शुद्धता और पवित्रता के बहुत कड़े नियम होते हैं, जिनका चार दिनों तक सख्ती से पालन करना होता है. इसमें व्रती को अपने हाथ से ही सारा काम करने की निष्ठा रखनी पड़ती है.

ठंडे जल में खड़े होकर पूजा: कार्तिक मास की ठंडी ऋतु में व्रती को नदी, तालाब या घाट पर ठंडे जल में घंटों खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देना होता है, जो शारीरिक रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण होता है.

चार दिनों का महापर्व: तिथियां 2025
छठ पूजा का पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है और समापन ‘उषा अर्घ्य’ के साथ होता है.

    पहला दिन 25 अक्टूबर नहाय-खाय: नदी में स्नान और शुद्ध, सात्विक भोजन ग्रहण.
    दूसरा दिन 26 अक्टूबर खरना: दिनभर उपवास, शाम को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण, जिसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू.
    तीसरा दिन 27 अक्टूबर संध्या अर्घ्य: डूबते सूर्य को अर्घ्य देना.
    चौथा दिन 28 अक्टूबर उषा अर्घ्य: उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण (समापन)

प्रकृति और लोक संस्कृति का अद्भुत संगम
छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह प्रकृति, जल और सूर्य की उपासना से जुड़ा लोक संस्कृति का अद्भुत पर्व है. इस दौरान घाटों को सजाया जाता है, पारंपरिक लोकगीत गाए जाते हैं, और प्रसाद में ठेकुआ, चावल के लड्डू और मौसमी फलों का उपयोग होता है, जो शुद्धता और सादगी का प्रतीक है. यही कारण है कि यह महापर्व करोड़ों लोगों के लिए केवल एक व्रत नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मक, परिवार के कल्याण और प्रकृति के प्रति सम्मान व्यक्त करने का एक अनूठा माध्यम है.

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