क्या भारत में वर्जिनिटी टेस्ट करवाना है कानूनी? कानून से जानें सच

नई दिल्ली

हाल ही में मुरादाबाद के पाकबड़ा इलाके से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है. दरअसल चंडीगढ़ की एक छात्रा से कथित तौर पर पाकबड़ा के एक मदरसे में वर्जिनिटी सर्टिफिकेट मांगा गया. जब उसने ऐसी मेडिकल जांच कराने से मना कर दिया तो उसका नाम रजिस्टर से हटा दिया गया और साथ ही कथित तौर पर उसे ट्रांसफर सर्टिफिकेट भी दे दिया गया. छात्रा के पिता की शिकायत पर जांच शुरू हो चुकी है लेकिन इस मामले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भारत में किसी भी लड़की का वर्जिनिटी टेस्ट करवाया जा सकता है? आइए जानते हैं.

क्या हैं वर्जिनिटी टेस्ट को लेकर कानून 

भारत में वर्जिनिटी टेस्ट करवाना या फिर उसकी मांग करना गैरकानूनी, असंवैधानिक और अमानवीय है. पिछले कुछ सालों में सर्वोच्च न्यायालय से लेकर अलग-अलग उच्च न्यायालयों तक कई अदालती फैसलों ने इस बात को साफ किया है कि ऐसी प्रथाएं महिलाओं की गरिमा और मौलिक अधिकारों का पूरी तरह से उल्लंघन करती हैं.

अदालतों ने वर्जिनिटी टेस्ट को गैरकानूनी घोषित किया

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2023 और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 2025 में यह स्पष्ट रूप से कहा था कि वर्जिनिटी टेस्ट असंवैधानिक, भेदभावपूर्ण और महिलाओं के लिए अपमानजनक है. इन फैसलों में इस बात पर भी जोर दिया गया था कि सभ्य समाज में इस प्रथा का कोई भी स्थान नहीं है और यह लैंगिक समानता और मानवाधिकारों के सिद्धांतों के खिलाफ है. 

संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन 

वर्जिनिटी टेस्ट को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का सीधा उल्लंघन माना जाता है. यह जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है जिसमें सम्मान और निजता के साथ जीने का पूरा अधिकार भी शामिल है. किसी भी महिला को इस तरह के टेस्ट के अधीन करने से उसके दोनों अधिकार छीन जाते हैं. 

सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय 

इतना ही नहीं बल्कि 2013 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यौन उत्पीड़न के मामले में इस्तेमाल किए जाने वाले टू फिंगर टेस्ट पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. यह टेस्ट वैज्ञानिक रूप से निराधार है और पीड़िता के निजता और सम्मान के अधिकार का उल्लंघन करता है.

मनोवैज्ञानिक और शारीरिक प्रभाव 

किसी भी महिला पर वर्जिनिटी टेस्ट के लिए दबाव डालने से गहरा मनोवैज्ञानिक आघात हो सकता है. पीड़ितों को शर्म, अपमान, चिंता और डिप्रेशन का अनुभव होता है और साथ ही लंबे समय तक सदमा भी बना रहता है. चिकित्सा विशेषज्ञ भी इस बात पर जोर देते हैं की वर्जिनिटी का निर्धारण करने का कोई भी वैज्ञानिक तरीका नहीं है. इसी के साथ कानून के तहत ऐसी प्रथाओं के लिए यौन उत्पीड़न, हमले और निजता के उल्लंघन से संबंधित प्रावधानों के तहत आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है.

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