जातीय गणित में उलझे नेता, अलीनगर बना सियासी दंगल का मैदान

दरभंगा
विधानसभा चुनाव में अपनी सफलता के लिए सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरण दुरुस्त करने में जुट गए हैं। सभी दल विभिन्न जातियों पर पकड़ रखने वाले नेताओं को अपनी ओर खींचने में लगे हैं। पार्टियां चुनाव प्रचार के बहाने जाति बहुल विधानसभा में संबंधित जातियों के स्टार प्रचारकों को भेज रहे हैं, ताकि उनके प्रभाव वाली जाति को अपने पक्ष में लाकर अपने दल के प्रत्याशी को विजयी माला पहनाई जा सके।

इसके लिए अलग-अलग जाति को साधने की भरपूर कोशिश की जा रही है। सभी तिकड़म लगाए जा रहे हैं। हालांकि, जातीय समीकरण के अनुसार ही क्षेत्र में प्रत्याशियों को भी उतारा गया है। इसके बावजूद संतोष नहीं है कि वह अपनी जाति के मतदाताओं को साध सकें। मिथिला में चुनाव पहले से ही जातीय आधार पर लड़े जाते रहे हैं। इसी कारण क्षेत्र विशेष में विभिन्न राजनीतिक दल प्रत्याशियों का चयन करते समय क्षेत्र विशेष में जाति विशेष की बहुलता पर विशेष ध्यान देते रहे हैं। दरभंगा के बेनीपुर विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाताओं की आबादी बहुतायत में है, इसलिए 2015 में भाजपा से गोपालजी ठाकुर और जदयू से सुनील कुमार चौधरी को मैदान में उतारा गया था।

वर्ष 2020 में जदयू के विनय कुमार चौधरी कांग्रेस के मिथिलेश कुमार चौधरी पर भारी पड़े थे। इस बार भी यही दोनों प्रतिद्वंद्वी मैदान में हैं। रोचक तथ्य तो यह है कि दोनों मजबूत ब्राह्मण उम्मीदवारों के बीच त्रिकोण बनाने वाले निर्दलीय प्रत्याशी अवधेश कुमार झा भी इसी समुदाय से आते हैं। महागठबंधन और राजग दोनों ने इस क्षेत्र में अपने-अपने प्रत्याशियों के प्रचार के लिए जिन स्टार प्रचारकों को भेजा है, उनमें भी अधिकांश उसी समुदाय के हैं।

पड़ोसी विधानसभा क्षेत्र अलीनगर में ब्राह्मण समुदाय के मतदाताओं की प्रभावी संख्या है। इसको देखते हुए राजग ने मैथिली ठाकुर, महागठबंधन ने विनोद मिश्र और जन सुराज ने विप्लव झा को प्रत्याशी बनाया है। अब प्रत्याशी का समुदाय किसके साथ जाएगा। इस गुत्थी को सुलझाने के लिए क्षेत्र में उसी समुदाय के स्टार प्रचारक की फौज भी उतारी जा रही है। वह अपने प्रत्याशी के पक्ष में अपनी जाति के कितने मतदाताओं को गोलबंद करेंगे, या मतदाता उनकी बात का कितना असर लेते हैं। यह तो चुनाव के बाद पता चलेगा, लेकिन जातीय गणित सुलझाने की गुत्थी में कोई भी गठबंधन या दल किसी से पीछे नहीं है।

ऐसा ही जातीय गणित का खेल जाले विधानसभा क्षेत्र में भी देखा जा रहा है कि जहां एनडीए ने अपने काबीना मंत्री जीवेश कुमार को तीसरी बार मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन ने राजद से कांग्रेस में लाकर पूर्व विधायक ऋषि मिश्रा को मैदान में उतार दिया है, जबकि वर्ष 2005 और 2010 के विधानसभा चुनाव में हालांकि जाति-कार्ड के बजाय विकास को मुख्य मुद्दा बनते देखा गया था।

मिथिला के लोग जातीय भावना से अब ऊपर उठ गए हैं, लेकिन वर्ष 2025 आते-आते सभी दलों का जोर फिर जातीय समीकरण बिठाने पर हैं। जिले के 10 विधानसभा सीटों पर पिछले विधानसभा में नौ पर एनडीए ने कब्जा जमाया था। लेकिन इस बार जातीय समीकरण के चक्र के सामने बड़े-बड़े प्रत्याशी धूल फांकते नजर आ रहे हैं।

 

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