वाशिंगटन
दुनिया भर में भारतीय दूतावासों ने देश के राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम' के 150 वर्ष पूरे होने पर सामूहिक गायन, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और सामुदायिक समारोहों के साथ प्रवासी भारतीयों में एकता और राष्ट्रीय गौरव की भावना को प्रतिबिंबित किया। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 1875 में रचित, वंदे मातरम को सबसे पहले उनके उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया गया था और बाद में यह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक नारा बन गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को इसकी 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में साल भर जारी रहने वाले स्मरणोत्सव का उद्घाटन किया।
वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास ने शनिवार को एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि सात नवंबर को भारतीय प्रवासी छात्रों द्वारा सामूहिक गायन के साथ इस मील के पत्थर को चिह्नित किया गया। ओटावा में, उच्चायुक्त दिनेश के. पटनायक ने भारतीय प्रवासी सदस्यों और उच्चायोग के अधिकारियों के साथ ‘वंदे मातरम' गायन का नेतृत्व किया। इस कार्यक्रम में ओडिसी नृत्य का प्रदर्शन भी किया गया। मिशन ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘इस अमर स्तुति का सम्मान करते हुए, हम एक आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर और पुनरुत्थानशील विकसित भारत 2047 के प्रति अपने संकल्प की पुष्टि करते हैं।'' दोहा में, राजदूत विपुल ने एक कार्यक्रम में राष्ट्रगीत के सामूहिक गायन का नेतृत्व किया, जिसे दूतावास ने राष्ट्र को जोड़ने वाली देशभक्ति और एकता की भावना के प्रति एक सम्मान बताया।
रियाद में, राजदूत सुहेल एजाज खान ने भारतीय समुदाय के साथ ‘वंदे मातरम' गायन में भाग लिया और कहा कि उन्हें मातृभूमि की भावना को महसूस करने पर ‘‘गर्व'' हो रहा है। कैनबरा स्थित भारतीय उच्चायोग ने पर्थ में एक सामुदायिक सभा का आयोजन किया, जहां उच्चायुक्त डी. पी. सिंह ने राष्ट्रगीत गायन का नेतृत्व किया। मिशन ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, ‘‘इस सामूहिक गायन में आईएएसवी त्रिवेणी पर सवार तीनों सेनाओं के अभियान ‘समुद्र प्रदक्षिणा' की सभी महिला दल की सदस्य भी शामिल हुईं-जो समुद्र के पार भारत की भावना, एकता और नारी शक्ति के प्रति एक सम्मान है।'' लंदन में, उच्चायोग के अधिकारियों ने राष्ट्रगीत गाकर इसे मातृभूमि के लिए एक सम्मान बताया, जो भारत के लिए एकता, गौरव और प्रेम को प्रेरित करती रहती है।
इसी तरह नेपाल, पेरू, चिली, अर्जेंटीना, कोलंबिया, दुबई, सिंगापुर और दक्षिण अफ्रीका सहित कई अन्य देशों के भारतीय मिशन ने भी राष्ट्रगीत की 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में गायन और सामुदायिक कार्यक्रमों का आयोजन किया। भारत की संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को आधिकारिक तौर पर ‘वंदे मातरम' को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाया था। प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को अपने भाषण में कहा कि वंदे मातरम ‘‘हमें हमारे इतिहास से जोड़ता है और हमारे भविष्य को नया साहस देता है''। इस गीत को हर युग में प्रासंगिक बताते हुए मोदी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर' का स्पष्ट संदर्भ देते हुए कहा, ‘‘जब दुश्मन ने आतंकवाद का इस्तेमाल करके हमारी सुरक्षा और सम्मान पर हमला करने का दुस्साहस किया, तो दुनिया ने देखा कि भारत दुर्गा का रूप धारण करना जानता है।''




