नई दिल्ली
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) को लेकर एक बड़ा अपडेट सामने आया है. रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन अनिवार्य PF और पेंशन कंट्रीब्यूशन के लिए सैलरी लिमिट बढ़ाकर अपने पात्रता मानदंडों में बड़े बदलाव पर विचार कर रहा है.
सरल शब्दों में कहें तो EPFO वेतन की मौजूदा सीमा (Wage Ceiling) को मौजूदा 15000 रुपये से बढ़ाकर 25000 रुपये करने का प्रस्ताव है. पहले यह 6,500 रुपये थी.इस कदम के पीछे का मकसद 1 करोड़ से ज्यादा कर्मचारियों को पेंशन और पीएफ की सामाजिक सुरक्षा में लाने का है.
यह तय करती है कि कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) और कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) के तहत कौन स्वतः नामांकित है. मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान वित्तीय सेवा विभाग (DFS) के सचिव एम नागराजू ने कहा कि यह बहुत बुरी बात है कि 15,000 रुपये से थोड़ा ज़्यादा कमाने वाले इतने सारे लोगों के पास पेंशन कवर नहीं है और बुढ़ापे में उन्हें अपने बच्चों पर निर्भर रहना पड़ता है. उन्होंने पुरानी पेंशन सीमाओं को अपडेट करने पर जोर दिया.
अभी क्या है नियम?
मौजूदा नियमों के तहत, केवल 15,000 रुपये तक की बेसिक सैलरी पाने वाले कर्मचारियों को ही ईपीएफ और ईपीएस के दायरे में लाया जाना चाहिए. इससे थोड़ा भी ज्यादा कमाने वाले लोग इससे बाहर निकल सकते हैं और नियोक्ताओं को उन्हें रजिस्टर्ड करने की कोई बाध्यता नहीं है. इससे शहरी निजी क्षेत्र के कर्मचारियों का एक बड़ा हिस्सा मामूली वेतन पाने के बावजूद, औपचारिक सेवानिवृत्ति बचत के बिना रह जाता है.
25000 रुपये हो सकती है ये लिमिट
रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि ईपीएफओ इस सीमा को बढ़ाकर 25,000 रुपये कर सकता है और अगले साल की शुरुआत में केंद्रीय न्यासी बोर्ड द्वारा इस मामले पर विचार किए जाने की उम्मीद है. श्रम मंत्रालय के एक डाटा से पता चलता है कि सीमा में ₹10,000 की वृद्धि से एक करोड़ से अधिक अतिरिक्त कर्मचारी अनिवार्य ईपीएफ और ईपीएस कवरेज के अंतर्गत आ सकते हैं. ट्रेड यूनियनें लंबे समय से इस तरह के संशोधन की मांग कर रही हैं, उनका तर्क है कि बढ़ती जीवन-यापन लागत और वेतन स्तरों के बीच मौजूदा सीमा पुरानी हो चुकी है.
ईपीएफओ फंड बढ़ेगा
कर्मचारियों के लिए, इस बदलाव से मासिक अंशदान बढ़ेगा, ईपीएफ कोष बढ़ेगा और पेंशन भुगतान में सुधार होगा. वर्तमान में, कर्मचारी मूल वेतन का 12% योगदान करते हैं, जो नियोक्ता द्वारा बराबर किया जाता है, जो अपना हिस्सा ईपीएफ और ईपीएस के बीच विभाजित करते हैं. हाई सैलरी बेस से दोनों पक्षों का योगदान बढ़ेगा. नियोक्ताओं के लिए प्रति कर्मचारी लागत बढ़ेगी.




