महाशक्तिमान हथियारों की तैयारी: ब्रह्मोस के बाप की 7400 KMPH रफ्तार, Su-30MKI जैसे जेटों से ताकत बढ़ेगी

बेंगलुरु 

ऑपरेशन सिंदूर के बाद स्‍ट्रैटजिक पॉलिसी में काफी बदलाव आया है. देसी टेक्‍नोलॉजी की मदद से फाइटर जेट और मिसाइल बनाने की रफ्तार को और तेज कर दिया गया है. भारत अभी भी फाइटर जेट का इंजन घरेलू स्‍तर पर नहीं बना पाता है, लेकिन अब इससे जुड़े प्रोजेक्‍ट पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं. अल्‍ट्रा मॉडर्न टेक्‍नोलॉजी की मदद से पांचवीं पीढ़ी का देसी फाइटर जेट डेवलप करने के डिफेंस प्रोजेक्‍ट पर भी काम चल रहा है. भारत स्‍वदेशी एयर डिफेंस सिस्‍टम बनाने में जुटा है, जिसे ‘मिशन सुदर्शन’ का नाम दिया गया है. इसके साथ ही एक और अहम प्रोजेक्‍ट पर भी काम चल रहा है. भारत अल्‍ट्रा मॉडर्न हाइपरसोनिक मिसाइल डेवलप करने में जुटा है. यह मिसाइल मैक-5 या फिर 6 की रफ्तार से टारगेट की ओर मूव करने में सक्षम होगी. इसका मतलब यह हुआ कि हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल 7400 किलोमीटर प्रति घंटे या उससे भी ज्‍यादा की रफ्तार से दुश्‍मनों पर धावा बोल सकती है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)  ET-LDHCM (Enabling Technologies for Long Duration Hypersonic Cruise Missile) हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल डेवलप करने में जुटा है. इस दिशा में डीआरडीओ को एक बड़ी सफलता मिली है. बता दें कि पाकिस्‍तान में तबाही मचाने वाली ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल की स्‍पीड 2300 से 3700 किलोमीटर प्रति घंटे है.

भारत ने 2024 में हाइपरसोनिक हथियार तकनीक के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाई. DRDO ने ET-LDHCM कार्यक्रम के तहत महत्वपूर्ण प्रगति की पुष्टि की है. यह प्रोजेक्‍ट लंबी दूरी तक उड़ान भरने वाली हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल के लिए मूल तकनीक विकसित करने के उद्देश्य से चलाया जा रहा है. रक्षा मंत्रालय की 2024 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, DRDO ने एक्टिव-कूल्ड स्क्रैमजेट इंजन का डिजाइन सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है. यह इंजन वह मुख्य तकनीक है, जो मिसाइल को लंबी दूरी तक हाइपरसोनिक गति (मैक 5 से अधिक) बनाए रखने में सक्षम बनाएगी. हाइपरसोनिक उड़ान के दौरान मिसाइल की बाहरी सतह और इंजन पर अत्यधिक तापमान पैदा होता है. ऐसे में एक्टिव कूलिंग सिस्टम बेहद जरूरी होता है, ताकि मिसाइल क्षतिग्रस्त न हो और अपनी गति बनाए रख सके. इसी कारण स्क्रैमजेट इंजन के एक्टिव-कूल्ड डिजाइन को पूरा होना भारत के लिए एक बड़े तकनीकी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है. दुनिया के बहुत कम देशों ने ऐसी तकनीक पर प्रभुत्व हासिल किया है.
फाइटर जेट बनेंगे महाशक्तिमान

प्रोजेक्‍ट के तहत सिर्फ डिजाइन ही नहीं बल्कि एक सब-स्केल कम्बस्टर प्रोटोटाइप भी तैयार किया गया और उसका रीक्षण किया गया. यह परीक्षण हाई-एनथैल्पी टेस्ट फेसेलिटी में किया गया, जिसमें वास्तविक उड़ान जैसी परिस्थितियां तैयार की गई थीं. ‘इंडियन डिफेंस रिसर्च विंग’ की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रायल में 60 सेकंड तक स्थिर दहन (स्टेबल कम्बशन) हासिल किया गया, जो अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है. DRDO के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार, इस परीक्षण ने स्क्रैमजेट इंजन की पूरी क्षमता की पुष्टि की है और इससे भविष्य के पूर्ण-स्केल मॉडलों के विकास में मदद मिलेगी. ये उपलब्धियां भारत के पहले हाइपरसोनिक परीक्षण वाहन HSTDV की सफलता के बाद हासिल की गई हैं, जिसने 2020 में मैक 6 की गति प्राप्त की थी. हालांकि, ET-LDHCM प्रोजेक्‍ट उससे अलग है, क्योंकि यह सिर्फ गति पर नहीं बल्कि लंबे समय तक हाइपरसोनिक उड़ान पर केंद्रित है. यह तकनीक सामरिक हमलों से लेकर बड़े सैन्य अभियानों तक कई क्षेत्रों में उपयोगी हो सकती है. भविष्य में इसे लड़ाकू विमानों जैसे Su-30 MKI और आने वाले AMCA के साथ भी जोड़ा जा सकता है.
एयर डिफेंस सिस्‍टम का तोड़

चीन और रूस की हाइपरसोनिक क्षमताओं के बीच यह प्रगति भारत की सामरिक क्षमता को काफी मजबूत करेगी. लंबी दूरी तक उड़ने वाली हाइपरसोनिक मिसाइलें किसी भी दुश्मन की एयर डिफेंस प्रणाली को भेदने में सक्षम होती हैं और जरूरत पड़ने पर पारंपरिक या परमाणु वारहेड भी ले जा सकती हैं. वायुसेना के लिए इसका एयर-लॉन्च वर्ज़न भारत की गहरी मारक क्षमता को कई गुना बढ़ा देगा. इस परियोजना को करीब 500 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई है, जिससे यह साफ है कि रक्षा मंत्रालय भविष्य की ऐसी तकनीक पर ध्यान दे रहा है जिसके सैन्य और नागरिकदोनों तरह के उपयोग हो सकते हैं. इससे हाई-स्पीड एविएशन के क्षेत्र में भी बड़े फायदे देखने को मिल सकते हैं. भारत की यह प्रगति आने वाले वर्षों में देश की रक्षा क्षमता में एक नया अध्याय जोड़ने वाली मानी जा रही है.

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