सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक मध्यप्रदेश इन दिनों सोयाबीन उत्पादन के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है. मध्यप्रदेश में भी महाकौशल, मालवा, निमाड़ में किसान सोयाबीन की जगह गेहूं और धान की खेती करने लगे हैं. असमान बारिश ने किसानों की रही-सही उम्मीद को भी तोड़ दिया है. यही वजह है कि खुद कृषि विभाग के अधिकारी मान रहे हैं अगर एक हफ्ते और बारिश नहीं हुई तो कुल सोयाबीन के उत्पादन में 15 फीसदी की गिरावट आएगी. हालांकि हालात और खराब भी हो सकते हैं. क्योंकि पिछली बार के मुकाबले इस बार बुवाई का रकबा करीब 15 लाख हेक्टेयर कम है. आगे बढ़ने से पहले ये जान लेते हैं कि सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के आंकड़े क्या कहते हैं?
वैसे मालवा क्षेत्र में ही सोयाबीन का ज्यादा उत्पादन होता है. वहां के किसानों से बात करिए तो जमीनी हालात का पता चलता है. मसलन मालवा के किसान खलील अहमद करीब चालीस बीघे में सोयाबीन बोते थे, लेकिन नुकसान होने की वजह से इस बार उन्होंने महज 18 बीघे में ही सोयाबीन लगाई है. इस पर मौसम के मिजाज की वजह से उन्हें नुकसान की आशंका है. कुछ ऐसी ही समस्या कैलाश नाम के किसान भी बताते हैं. उनके मुताबिक पीलापन बहुत ज्यादा आ गया है खेतों में ज्यादा उत्पादन की संभावना नहीं है. पानी की खींच भी हो रही है तो भाड़ा खर्च भी मुश्किल से निकल पाएगा.
सोयाबीन पीली पड़ रही है. बादल घुमड़ तो रहे हैं लेकिन पानी नहीं गिर रहा है. ऐसी स्थिति रही तो फिर जानवरों को फसल खिलानी पड़ेगी. कर्ज नहीं चुका पाएंगे तो जहर खाने की नौबत आ जाएगी.
कैलाश कहते हैं कि यदि बीमा मुआवजा सही मिल जाए तो किसानों का सहयोग हो जाएगा बता दें कि पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ में भी पहले बारिश की कमी फिर येलो मोजेक ने सोयाबीन की फसल को बर्बाद कर दिया. यहां आपको कई ऐसे किसान मिल जाएंगे जिनकी फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई है.
हमने जुलाई में बोवनी की थी लेकिन बारिश ने दगा दे दिया. जिससे फसल बीमार हो गई है. अब भारी नुकसान की आशंका है.
आगर-मालवा ज़िले में कृषि विकास विभाग के उपसंचालक एनबी वर्मा भी कहते हैं कि कई दिनों से बारिश की कमी से फसल मुरझाने लगी है. ऐसे हालत में जिन किसानों के पास में फव्वारा या स्प्रिंकलर सिस्टम या कुंआ है वो पानी देने की व्यवस्था करें और फसलों को बिगड़ने से बचा लें. किसानों को वर्मा सलाह देते हैं कि निर्धारित मात्रा में कीटनाशकों का उपयोग करें. परेशानी की बात ये है कि किसानों की मांग पर सरकार की अपनी दलील है. बारिश और सरकारी बेरूखी पर विपक्ष की भी अपनी सियासत है. बड़ा सवाल ये है कि किसानों को राहत कब और कैसे मिलेगी?