पदोन्नति में आरक्षण के पुराने प्रविधान से फिर होगी उलझन, नियम 2002 के तरह

भोपाल
नौ साल बाद प्रदेश में मोहन सरकार पदोन्नति की व्यवस्था शुरू करने की मंशा के साथ नए नियम बनाने में जुटी है। इसमें जो प्रविधान प्रस्तावित किए जा रहे हैं वे पदोन्नति में आरक्षण नियम 2002 के तरह ही हैं। इसमें एससी-एसटी वर्ग के लिए आरक्षण अनुसार पदोन्नति के पद सुरक्षित रहेंगे। शेष अनारक्षित पदों के लिए जो योग्यता सह वरिष्ठता का फार्मूला बनेगा, उसमें आरक्षित वर्ग भी शामिल रहेगा। यही पदोन्नति में आरक्षण नियम-2002 के विरोध का प्रमुख कारण था।
 
 कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों का कहना है कि सरकार को क्रमोन्नति जैसा फार्मूला निकालना चाहिए जिसमें सबको बराबरी से आगे बढ़ने का अवसर मिले। यही स्थिति अब फिर बनती नजर आ रही है। सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संघ के प्रांताध्यक्ष केपीएस तोमर का कहना है कि अभी नए नियम का प्रारूप हमसे साझा नहीं किया गया है। पर जो बात सामने आ रही है, वह इशारा कर रही है कि लगभग पुरानी व्यवस्था ही बहाल करने की तैयारी है। यदि ऐसा होता है तो यह सुप्रीम कोर्ट के एम.नागराज सहित समय-समय पर दिए गए निर्देशों के विपरीत होगा। इसको लेकर हम विभाग के सामने प्रस्तुतीकरण भी दे चुके हैं।

एससी-एसटी वर्ग को जनसंख्या के अनुपात में पदोन्नति में आरक्षण दिया जाता है और अनारक्षित पदों पर उन्हें अनारक्षित मानकर योग्यता सह वरिष्ठता के आधार पर लाभ दिया जाता है तो यह दोहरा लाभ देने और सामान्य वर्ग के कर्मचारियों के हितों की अवहेलना का मामला होगा।
वर्ष 2016 तक पुराने नियम से पदोन्नति पाकर आरक्षित वर्ग के अधिकारी-कर्मचारी पहले ही ऊपर आ चुके हैं। यहीं से फिर पदोन्नति की प्रक्रिया आरंभ करने पर निश्चित तौर पर वे ही लाभान्वित होंगे।
उच्च पदों पर अनारक्षित वर्ग पहुंच ही नहीं पाएगा। एम. नागराज के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कार्य दक्षता का आकलन करने के निर्देश दिए थे, उसका प्रविधान होना चाहिए और इसके लिए अलग प्रणाली हो।
क्रीमीलेयर की तो बात ही नहीं हो रही है, जबकि हरियाणा के पदोन्नति में आरक्षण देने के निर्णय को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट निर्णय सुना चुकी है कि पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले क्रीमीलेयर के सिद्धांत का पालन करना अनिवार्य होगा।

समयमान का फार्मूला ही बेहतर
उधर, मंत्रालयीन अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है कि यह बात समझ नहीं आती है कि पदोन्नति के मामले में असंमजस क्यों है।
समयमान के साथ उच्च पदनाम देकर आसानी से समाधान हो सकता है। इसमें न किसी वर्ग की नाराजगी होगी और न ही कोर्ट की अवमानना।
राज्य प्रशासनिक सेवा, कोष एवं लेखा, स्वास्थ्य, स्कूल शिक्षा, जनजातीय कार्य सहित अन्य विभाग इसे अपना भी चुके हैं और वहां कोई विवाद भी नहीं है।
समयमान वेतनमान के साथ उच्च पदनाम देना ही इस मुद्दे का निर्विवाद और सर्वमान्य हल है।

नियम लागू करते ही कैविएट लाएगी सरकार
नए पदोन्नति नियम में आरक्षण शब्द ही नहीं रखा जा रहा है। इस नियम को पदोन्नति नियम-2025 कहा जाएगा। इसे कैबिनेट की मंजूरी मिलती है तो सामान्य प्रशासन विभाग हाई कोर्ट में कैविएट दायर करेगा ताकि यदि कोई इसे चुनौती देता है तो बिना सरकार का पक्ष सुने कोई आदेश न हो। दरअसल, विभाग को अंदेशा है कि नियम लागू होते ही प्रभावित पक्ष कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।

 

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